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२७४ : जैनसाहित्यका इतिहास पुष्पदन्तका समय ईसाफी दूसरी शतीका पूर्वाद्ध प्रमाणित होता है ऐमी रियतिम फुन्द-कुन्दका समय ईसाकी दूसरी पातीके मध्यगे पहिले नही होना चाहिए । शामकुण्डकृत 'पद्धति'
इन्द्रनन्दिके अनुसार यह टोका पट्यण्डागमके पाच सण्डीपर तथा कसायपाहडपर रची गयी थी। यह टीका पद्धति स्प थी । जयघवलाके अनुसार सूत्रवृत्ति इन तीनोफे विवरणको पति कहते हैं। तदनुमार वह पद्धति नामक टीका कसायपाहुडके गाथा सूमो और वृत्तिका विवरण रूप होनी चाहिये इसी पखण्डागमके भो किन्ही सूत्रो और वृत्तिको लेकर यह रची गया होगी । शायद वह वृत्ति परिकर्म सूत्र ही हो। इन्द्रनन्दिके अनुसार यह टीका परिकर्मसे कितने ही काल पश्चात् लिसी गयी थी। और उसकी भापा प्राकृत, मस्कृत और कन्नडी तीनो मिश्रित थी।
जयधवलामें वृत्तिसूत्र, टीका, पजिका, और पद्धतिका लक्षण है तथा जयधवलाको अन्तिम प्रशस्तिमें एक श्लोक द्वारा कपाय-प्राभूत विषयक साहित्यका विभाग इस प्रकार किया है-'सून तो गाया सूप है, चूणिसूत्र वार्तिक अथवा वृत्तिरूप है टीका श्री वीरसेन रचित जयधवला है और शेप या तो पद्धति रूप है या पजिकारूप है।' यहाँ बहुवचनान्त 'शेषा' शब्दसे यह स्पष्ट प्रतीत होता है, कि कपाय-प्राभूत पर अन्य भी अनेक विवरणात्मक ग्रन्थ थे जिन्हें जयधवलाकारने पद्धति या पजिका कहा है। उन्हीमें शामकुण्डाचार्य रचित 'पद्धति' भी हो सकती है। किन्तु धवला या जयघवलामें इम टोकाका कोई उल्लेख नहीं मिलता।
साथही सामकुण्ड नामक किन्ही आचार्यका पता भी अभी तक नही लग सका है। शामकुण्ड नाम कुन्दकुन्दका ही प्रतिपक्षी ज्ञात होता है । दोनोके अन्तमें कुण्ड या कुन्द शब्द आता है । और साम (श्याम) कुन्दका विपरीत हैकुन्द सफेद होता है और श्याम कालेको कहते हैं । अतः कुन्दकुन्द नामको सामने रख कर हो 'सामकुण्ड' नामको उपज होना सम्भव है । तुम्वुलूराचार्य कृत्त 'चूड़ामणि'
इन्द्रनन्दिने शामकुण्डाचार्य रचित पद्धतिके पश्चात् तुम्बुलूराचार्य रचित 'चूडामणि' नामकी व्याख्याका उल्लेख किया है और बतलाया है कि यह व्याख्या षट्खण्डागमके प्रथम पाचखण्डोपर तथा कसाय-पाहुड पर रची गयी थी और उसका प्रमाण चौरासी हजार था। उसकी भाषा कनडी थी। इसके अतिरिक्त १. सुत्तवित्ति विवरणाए पदई ववएसादो।'-क० पा०, भा॰ २, पृ० १४ । २. 'गाथासूत्राणि सूत्राणि चूर्णिसूत्र तु वार्तिकम् ।
टीका श्रीवीरसेनीया शेषा. पद्धति पजिका. ॥२९॥
है।' यहां वहवाला है और शेष या
होता है, कि