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श्रुतावतार ७
उगा नाग पुष्पदन्त गगा।
भरगगे पिला देगी पदनात् दोनो गाभाने अगलेश्वर (गुजरात) में वर्णाभाग लिया । वर्षागोग गगा होनेपर आनार्ग गुणदन्त तो जिनपानितको देगने के लिए नाग देगाो चले गये और भूतबनि गिल भगत नले गये । गुपदन्तने गत्मपणा Tinी निना की मोर जिनपारित दीक्षा देकर तथा पढार भूतलो पान भेज दिया । नलिने जिनपालितो पाग गत्प्रापणारे गूत्र देसे और उगगे द्वारा गह भी जाना कि पुपरन्तगी बस आयु मेप है। अत उन्हें गहामार्गप्रकृतिमाता पिच्छर हो जानेगी आगफा हुई। तब उन्होंने द्रव्यप्रमाणानुगगी आदि लेकर गन्य रचना की। एग तरह भूतबलि और पुष्पदन्त मानायने पटगागग गिदान्तगी रचना की।
श्रुतावतारका यह विवरण पीग्गन स्वामीने कायपाहुको टीका जयघवलाम तथा पट्गपागमती टीका धरलाम दिया है। किन्तु इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमं मोनो ग्रन्यो अवतारका वर्णन क्रमग किया है। उन्होंने प्रथम पटमण्डागगन मयतारती गाथा दी है, गपचात् कगायपाही भरतारकी। पट्यण्डागमकी अवतारकयाम इतना विगग गाथन है कि भूनवाल आचार्यने द्रव्यप्रपणा आदि अधिकारको लेपार पनि राण्डोकी रचना की, फिर महावन्ध नामा छठ सण्डकी रचना की । उस तरह भूतलि आचार्यने पाण्यागमकी रचना करके उन्हे पुस्तकोमें स्थापित किया और ज्येष्ठ शुक्ला पचगीके दिन चतुविध सपके माय पुस्तकोंके दाग विधिपूर्वक पूजा की। उगगे वह तियि बुतपञ्चमीके नाममे ख्यात हुई । आज भी जैन उस दिन श्रुतपूजा करते है।)
सक्षेपमे यह उन दो गिद्धान्त-गन्योके अवतारको काथा है जिनका पूर्वोके साथ माक्षात् सम्बन्ध है और जिनके ऊपर कितनी ही टीकाएँ रची गई थी।
यद्यपि इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमै पट्यण्डागमो अवतारकी कथाको प्रथम स्थान दिया है और वीरसेन स्वामीने भी प्रथम उगीपर टीका रची थी, तथापि रचनाकाल आदिकी दृष्टिरो कपायपाहुट प्रथम प्रतीत होता है । अत प्रथम उसीके सम्बन्धमे विवेचन किया जाता है। १. 'श्व पटसण्यागगरचना प्रविधाय भूतवल्यार्य ।
आरोप्यामद्भावरथापनया पुस्तकेपु तत ॥१४२।। ज्येष्ठसितपक्षपञ्चम्या चातुर्वर्ण्यमघममवेत । तत्पुस्तकोपकरणबधात् मियापूर्वक पूनाम् ॥१४३।। श्रुतपज़मीति तेन प्रख्याति तिथिरिय परामाप । यथापि येन तस्या श्रुतपूजा कुर्वते जेना ॥१४४।।
-तत्त्वानु० पृ० ८६