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चूर्णिसूत्र साहित्य : १८९
'शब्द,' समभिरूढ और एवं भूतनय नाम निक्षेप और भाव निक्षेपको विपय करते है।' इनका विशेष खुलासेके लिये जयधवला टीका देखनी चाहिये । अब हम पुन: निक्षेपोकी ओर आते है । 'पेज्ज' यह शब्द नाम पेज्ज है । किसी दूसरे पदार्थमें 'यह पेज्ज है' इसप्रकार पेज्जकी स्थापना करना स्थापना पेज्ज है। द्रव्य पेज्जके दो भेद है-आगम द्रव्य पेज्ज और नोआगम द्रव्यपेज्ज । जो जीव पेज्ज विपयक शास्त्रको जानता हुआ भी पेज्जविषयक शास्त्रके उपयोगसे रहित अर्थात् उसमें लगा हुआ नही है, उसे आगमद्रव्यपेज्ज कहते है । ___ नोआगमद्रव्यपेज्जके तीन भेद है-ज्ञायकशरीर, भावि और तद्वयतिरिक्त । पेज्जविषयक शास्त्रके ज्ञाताके भूत, वर्तमान और भावि शरीरको ज्ञायक शरीर कहते है । जो भविष्यमें पेज्जविषयक शास्त्रको जाननेवाला होगा उसे भावि नोआगमद्रव्यपेज्ज कहते है। तद्वयतिरिक्त नोमागमद्रव्यपेज्जके दो भेद हैकर्मपेज्ज और नोकर्मपेज्ज ।
उक्त निक्षेपोका अर्थ सुगम जानकर यतिवृषभाचार्यने इनका अर्थ नही कहा। आगेके निक्षेपका अर्थ करते हुए वह कहते है-'नोकर्म -तद्वयतिरिक्त-नोआगमद्रव्यपेज्ज तीन प्रकारका है-हितपेज्ज, सुखपेज्ज और प्रियपेज्ज । इन तीनोके सात भग होते है।' ___ जो द्रव्य व्याधिके उपशमनका कारण होता है उसे हित कहते है, जो द्रव्य जीवके आनन्दका कारण होता है उसे सुख कहते है और जो वस्तु अपनेको रचती है उसे प्रिय कहते है । तीन भग तो ये है ही। दाख हितरूप भी है और सुखरूप भी है । नीम हितरूप भी है और प्रिय भी है, पित्त ज्वरके रोगीको कडवी वस्तु प्रिय लगती है। दूध सुखकर भी है और प्रिय भी है। ये तीन द्विसयोगी भग हुए। गुड और दूध हितकर, सुखकर और प्रिय होते है। ये सब सात भग होते है।
_ 'यह तयतिरिक्त-नोआगम-द्रव्यपेज्जका सात भगरूप कथन नैगमनयकी अपेक्षासे है ।' सग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्रकी अपेक्षा समस्त द्रव्यपेज्जरूप है।" भावपेज्जका कथन स्थगित करते है । १ सद्दणयस्स] णाम भावो च' । क. पा० भा० पृ० २६४ । २. 'नोआगमदव्यपेज्ज तिविह-हिद पेज्ज, सुह पेज्ज, पिय पेज्ज । गच्छगा च सत्त
भगा क. पा० मा० १, पृ २७१ । ३ 'एद णेगमस्स। सगहववहाराण उजुसुदस्स च सव्य दव्व पेज्ज।' क. पा. भा०
१, पृ ०७४। ४ भावपेज्ज वणिज्ज' -क. पा० भा० १,०७६ ।