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१२२ : जेनसाहित्यका इतिहास अधिकार है और क्षेत्रोंगे प्रगतिभेदाप गायन करनेवाला नीगग अधिकार है।
इस प्रकार वेदनापग्गिाण को प्रापणा तीन प्रकाग्गे की है।
गया-प्रत्ययंता-अभितारको अपेक्षा नानापरणीय और वर्णनावरणीय वर्गका कितनी प्रकृतियां है? ॥३॥
ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीया की अमरगातलोत्रमाण प्रतियो है ॥४॥ ___आगय यह है जिनने गाना भेद है उतना ही फर्ग की भावग्णातिया। उनके बिना जगणातलोना प्रमाण भान नही बन गकने । त गय भान दर्शनपर्वक ही होत है और जितने दर्शन है उतनी ही दर्शनारणको आपणनिया है। इस प्रकारगे शानावरणीय और दर्शनापनीयती प्रतिया अगम्गातलाप्रमाण है।
वंदनीगकर्मकी दो प्रतियां है ।। -॥ मोहनीयकनगी अद्वारा प्रकृतिया है ॥१०॥ आयुकर्मको नार प्रकृतियां है ।।१३॥ नामार्गको अराम्गातलोकमात्र प्रकृतिया है ॥१६॥ गोगकर्गको दो प्रकृतिया है ।।१९।। अन्तरायकर्मी पांच प्रकृतियां है ॥२२॥
समयप्रवद्धार्यता-अधिकारको अपेक्षा नानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तरायफर्मकी कितनी प्रकृतियां है ? ॥२५।। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तरायकर्मकी एक-एक प्रकृति, तीग फोडाकाठी मागरापगोको नमयप्रवहार्यतारो गुणित करनेपर जो प्राप्त हो, उतनी है ॥२६॥ ____ आशय यह है कि इन तीनो कोको स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है। उसके अन्तिम समयमें कर्मस्थितिप्रमाण समयप्रवद्ध होते है, क्योकि कर्मस्थितिके प्रथम समयमे लेकर उसके अन्तिम समय तक बांधे गये मगयप्रवद्धोके एक परमाणुसे लेकर अनन्तपरमाणु तक कर्मस्थितिके अन्तिम मगयमे पाये जाते है। कालभेदमे प्रकृतिभेदको प्राप्त हुए इन समयप्रबद्धोका सकलन करनेपर एक समयप्रवद्धकी शलाकाओको स्थापित करके उसे तीस कोडाकोडी सागरोपमोसे गुणित करनेपर उतनी मात्र ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायमेंसे एक-एक कर्मकी प्रकृतियाँ होती है। इसी प्रकार प्रत्येक कर्मको स्थितिको उसकी समयप्रवद्धार्थतासे गुणित करनेपर प्रत्येक कर्मकी प्रकृतियाँ जाननी चाहिये । आयुकर्म इसका अपवाद है । अन्तर्मुहूर्तकालको समयप्रवद्धार्थतासे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी ही आयुकर्मकी प्रकृतियाँ वतलाई है, क्योकि आयुकर्मका बन्ध सदा नही होता।