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११० जनमाहित्यका इतिहास
गंग गात कांगी जाना आवाधा गवर्ग पोली॥१२नानागारगान और आनापा दोनो ही गमान गगानगणं है ?
उतर आवामागे एगः गगमग जगमा मामाटा र आमामा ग्यानी उत्पत्ति होती। मन मग नावामा पा उमष्ट आवारा गरमानगणी लिग आना मान भी उगमे गायातना। और गयोगिक T-एग. आयाागानमन्त्री गोपगो TIME माग गार म्पितिवन्नम्मान : उनी जानामा गा।गि जानाम्या और आपका दोनों समान है।ग रग मानिfrया गया।
दुगरी लिकाम-मायामागम्यान पापा नीन जनुयोग नाग की गह
तीन अनुयागार -जीममा प्रनिगमसार और hिtगमाहार।
स्थितिबन्सम्यान मारणभूत मान-निलिम्पानोंको बिनाप्यागागस्थान गाहते है । अगातावंदनीय बनायाग्य कपागोदगम्मानोगी मगरंश रहते है और गातावंदनीगर्ग चन्मयोग परिणामांगो विगटिस्यान नहीं है। मे गपगविशुद्धिम्यान शितिवनमा मल गारण है । इनका वर्णन यहा तीन अनुगागनागेंगे किया गया है।
गाता और अगताको एक स्थितिमें इतने जीव है गौरतने नहीं है, पूरा वातका ज्ञान प्रथम अनुयोगदार जीपगगुदाहाग्गे द्वारा कराया गगा है। गया'ज्ञानावरणीयो वन्य जीव दो प्रकार है-गातबार और अमातबन्धक ॥१६॥
मातवन्धकजीव तीन प्रकारके है गतु.स्मानबन्धक, मिरवानगन्धक और हिस्यानवन्धकः ।
अगातवन्धकजीव तीन प्रकार है-द्विस्थानवन्धक, विस्थानवन्धर और नतुस्थानबन्धका ।
आशय यह है कि माता या असतावेदनीयके बिना ज्ञानावरणीयका वन्ध नही होता । इसलिये ज्ञानावरणीयकर्मका वन्ध करनेवालोके दो भंद कर दिये--मातवेदनीयवन्धक और अगातवेदनीयवन्धक । माताकी अनुभागशक्तिपी उपमा गुड, खाण्ड, शक्कर और अमृतमे दी गई है । गुडके समान प्रथम भागको पहला स्थान, खाडके ममान दूसरे भागको दूसरा स्थान, शक्करके ममान तीगरे भागको तीसरा स्थान और अमृतके समान चौथे भागका चौथा स्थान कहा जाता है। इसी तरह दुखदायी असाताके अनुभागको नीम, काजीर, विप और हालाहलकी उपमा दी