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१०८ जनगाहित्यका इतिहास
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निकप्रापणा-गर्गपरमाणुगोगे मनगो निक्षेपण गरी निरोग रहने है। गोगस्थान द्वारा प्रदेशवन्म होता है। गो बन्नको प्राप्त हुए फर्मपरमाणुस्कन्ध आठो कोम विभाजित हो जाते है। और आवाधार बीतनंपर कमी उदयमें आने लगते है और स्थिति पूरी होने तक उदय भाते रहते हैं । उगीका कयन निकाप्ररूपणाम है। यगा-'अन्तरोपनिषाली अपेक्षा रानी पन्द्रिय पर्गाप्तक गिथ्यादृष्टि जीयोंके ज्ञानावरणीय, पशूनायग्णीय, पेदनीय, और अन्तराग कर्मकी तीन हजार वर्ष प्रमाण आवाधाको छोड़कर जो प्रसार प्रथम समयमें निक्षिप्त है वह बहुत है । दूगरे रामयमें जो प्रदेगारा निक्षिप्त है वह उससे विशेष हीन है, तीसरे समयमें जो प्रदेशारा निक्षिप्त है वह उससे विशेष हीन है । इसप्रकार उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागर पर्यन्त प्रति समय निक्षिप्त प्रदेशाग्न उत्तरोत्तर विशेप होन होता जाता है ॥१०२॥