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९२ • जैनसाहित्यका इतिहाग
ग्रन्यमे जीवरथान, मार्गणारयान, गणरबान, उपयोग, योग, लेपया, बन्ध, अरपबहुत्न, भाव और राम्याका राक्षिप्त गायन मिलता है । इगम गाथा ९गे १३ तक मार्गणास्थानके भेद तथा गाथा १२ से २५ तक मार्गणाओगं गणम्यान बालाये है । मार्गणाओमे गणस्थानोका वर्णन करते हुए गतिमान और ताज्ञानमें दो अथवा तीन गुणस्थान बतलाये है । दिगम्बर परम्पराम दो ही गुणग्यान माने गये है। गाथा ३७ मे ४८ तक मार्गणाओगे अल्पवहुन्यका विनार frया गया है । यह प्रज्ञापनाके अरपवहत्वनामक तीगरे पदगे लिया गया है । प्रजापना तीग पदम अल्पबहन्वका विचार विस्तारसे किया गया है।
अनुयोगहारमयम पायल गनुष्यारिको गरयाका योजागा वर्णन मिलता है। किन्तु द्रव्यप्रमाणानुगमो गा| उसका मेल नही गाना। गा मारण यह है कि दोनोम विभिन्न अपेक्षाओगे मनुष्योकी नग्माका गायन किया है। इस तरह जीवट्ठाणमे प्रतिपादित विषयको गुर फुटार बातीका थोडा-मा गायन वेताम्बर माहित्यमें मिलता है।
२ खुद्दाबन्ध इस सण्डका विषय उसके नामगे ही प्रकट है। इसमें राहा अर्थात् क्षुद्ररूपमे कर्मवन्धका विवेचन है । छठवें गड महावन्धगे इगका भेद करनेके लिए ही अथवा उसकी अपेक्षा इसकी लघुता मूचित करने के लिए ही काग्ने इमको सुद्दावन्य मज्ञा दी है, ऐमा प्रतीत होता है। गका प्रथम सूत्र है-'जे ते वागा णाम नेसिमिमो णिशो ॥१॥-जो व वधक जीव है उनका यहां निर्देश किया जाता है।
इसकी धवलाटोकामै लिखा है कि 'जे ते वगा णाम' ये शब्द बन्धकोकी पूर्व प्रसिद्धिको सूचित करते है । सो महाकर्गप्रकृतिप्राभृतो कृति, वेदना मादि चौवीस अनुयोगहारोमे छठवें अनुयोगद्वार वन्धनके वध, वचक, वधनीय और वधविधान ये चार अधिकार है। उसमेमे जो बन्धक नामका दूसरा अधिकार है उसमे निर्दिष्ट वन्धकोका ही यहाँ निर्देश किया गया है। अस्तु, दूसरे सूनम चौदह मार्गणाओके नाम गिनाकर तीसरे सूत्रमे मार्गणाओके अनुसार बन्धकोका कथन प्रारम्भ होता है । यथा--नारकी जीव वन्धक है। तिर्यञ्च बन्धक है । देव वन्धक है । किन्तु
१ नमिय जिण जिअमग्गण गुणठ्ठागुवओगगलेस्साओ।
बधप्पवहूभावे मसिज्जाई किमवि बुच्छ ॥१॥ ० गा०००। ३ पट्ख०, पु० १, पृ० ३६१ । ४ पटख०, पु० ३, सूत्र ४५, तथा अनुयोग०, पृ० २८५ । ५ पट्खण्डागमकी ७ौं पुस्तकमे खुधावन्ध खण्ड मुद्रित है।