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________________ परिशिष्ट इनका भी नाम अभिमानमेरु या अभिमानांक है । परन्तु उद्योतनसूरिने अपनी कुवलयमाला में अभिमानाङ्क, पराक्रमाङ्क, और साहसाङ्क नामके तीन पूर्ववर्ती कवियोंका उल्लेख किया है, अतएव संभव है कि हेमचन्द्रका अभिप्राय इनमें से पहले अभिमानांक से ही हो ―――― अण्णेवि महाकइणो गरुअकहाबंध चिंतियमईआ । अभिमाण-परक्कम - साहसांक वि णएवि इंतेमि ॥ ३४ ५७३ वनवासी और चैत्यवासी सम्प्रदाय ( ३४७–३६९ ) मर्करासे भी पहलेका एक शिलालेख साँची में मिला है जो गुप्त संवत ९३ ( वि० सं० ४६८-६९ ) की भाद्रपद चतुर्थीका है । इसमें उन्दानके पुत्र आमरकार देवद्वारा दिये गये ईश्वरवासक गाँव और २५ दीनारोंके दानका उल्लेख है' । यह दान काकनाबोटके विहारमें नित्य पाँच जैनभिक्षुओंके भोजन के लिए और रत्नगृहमें दीपक जलाने के लिए दिया गया था । यह आमरकारदेव चन्द्रगुप्त ( द्वि० ) के यहाँ किसी सैनिक पदपर नियुक्त था । आचार्य शुभचन्द्र और उनका समय ( पृ० ४४०-४५१ ) पाटनके भंडारकी ज्ञानार्णवकी प्रति जिन सहस्रकीर्ति के लिए पं० केशरीके पुत्र वीसलने लिखी थी, ऐसा जान पड़ता है कि उन्हीं सहस्रकीर्तिका उल्लेख खंभातके चिन्तामणि पार्श्वनाथके मन्दिरके शिलालेख में किया गया है । उक्त शिलालेख वि० सं० १३५२ का है । लेखकी दाहिनी ओरकी ११ पंक्तियोंका प्रारंभिक अंश खंडित हो गया है । इसलिए पूरे लेखका भावार्थ समझ में नहीं आता; फिर भी इतना मालूम होता है कि उक्त मन्दिरका निर्माण वि० सं० १२६५ में हुआ था, और जीर्णोद्धार वि० सं० १३५२ में जिसके उपलक्ष्य में उक्त लेख १ कौपर्स इन्स्क्रप्शन्स इंडिकेरम, जिल्द ३, पृ० २९ और भारत के प्राचीन राजवंश द्वि० भा० पृ० २६३ २ देखो, मुनि जिनविजयजीद्वारा सम्पादित प्राचीन जैन-लेख-संग्रह, लेख नं० ४४९
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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