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________________ भट्टारक गुणभद्र चित्रबन्धस्तोत्रके कर्ता गुणभद्रकीर्ति नामके आचार्य भगवजिनसेनके शिष्य गुणभद्राचार्यके अतिरिक्त कोई दूसरे ही हैं । २७ वें श्लोकमें इस स्तुतिको ' मेधाविना संस्कृतां' ( मेधावीके द्वारा संस्कार की हुई ) विशेषण दिया है। संभवतः ये वही पं० मेधावी हैं जो धर्मसंग्रहश्रावकाचारके कर्ता हैं और जिन्होंने मूलाचारकी ' वसुनन्दिवृत्ति, ' ' त्रिलोकप्रज्ञप्ति' आदि ग्रन्थों के अन्तमें उक्त ग्रन्थोंके दान करनेवालोंकी बड़ी बड़ी प्रशस्तियाँ जोड़ी हैं । यदि हमारा यह अनुमान ठीक है, तो यह स्तोत्र १६ वीं शताब्दिका बना हुआ है। क्योंकि पं० मेधावीने उक्त प्रशस्तियाँ वि० सं० १५१६ और १५१९ में रची हैं। मेधावीके समयमें एक गुणभद्र नामके आचार्य थे भी, इसका पता जैनसि. द्धान्तभवन आराके ' ज्ञानार्णव' नामक ग्रन्थकी लेखक-प्रशस्तिसे लगता है । यथा___“ संवत् १५२१ वर्ष आषाढ़ सुदि ६ सोमवासरे श्रीगोपाचलदुर्गे तोमरवंशे राजाधिराजश्रीकीर्तिसिंहराज्यप्रवर्तमाने श्रीकाष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे भ० श्रीगुणकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० श्री. श्रीयशःकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीमलयकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ. श्रीगुणभद्रदेवास्तदाम्नाये गर्गगोत्रे....।" __ इससे मालूम होता है कि वि० सं . १५२१ में ग्वालियरमें गुणभद्रनामके आचार्य थे जो काष्ठासंघ -माथुरान्वय और पुष्करगणकी गद्दीपर आरूढ़ थे । बहुत संभव है कि चित्रबन्धस्तोत्रके कर्ता यही हों और इन्हींकी रचनाको उसी समयमें होनेवाले पं० मेधावीने संस्कृत किया हो । १ माणिकचन्द्र-ग्रन्थमालाके सिद्धांतसारादिसंग्रहमें प्रकाशित । २ यो नाधीत इमां स्तुतिं विनयतो मेधाविना संस्कृताम् । पुंनागः कवितां स याति सनृपतिः (१) स्वर्गश्रियं चाश्नुते ॥ ३ दखो जैनहितैषी भाग १५, अंक ३-४ । पं० मेधावीका बनाया हुआ धर्म संग्रहश्रावकाचार नामका ग्रन्थ भी है, जो वि० संवत १५४१ में समाप्त हुआ है और भाषा-टीकासहित प्रकाशित हो चुका है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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