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शानभूषण और शुभचन्द्र
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१ चन्द्रप्रभचरित, २ पद्मनाभचरित, ३ जीवंधरचरित, ४ चन्दना कथा, ५ नन्दीश्वरकथा, ६ आशाधरकृत नित्यमहोद्योतकी टीका, ७ त्रिंशच्चतुर्विंशतिपूजापाठ, ८ सिद्धचक्रवतपूजा, ९ सरस्वतीपूजा, १० चिन्तामणियंत्रपूजा, ११ कर्मदहनविधान, १२ गणधरवलयपूजा, १३ ( वादिराजकृत ) पार्श्वनाथकाव्यकी पंजिका टीका, १४ पल्यव्रतोद्यापन, १५ चतुस्त्रिंशदधिकद्वादशशतोद्यापन ( १२३४ व्रतोंका उद्यापन), १६ संशयिवदनविदारण ( श्वेताम्बरमतखण्डन ), १७ अपशब्दखण्डन, १८ तत्त्वनिर्णय, १९ स्वरूपसम्बोधनकी वृत्ति, २० अध्यात्मपद्यटीका, २१ सर्वतोभद्र, २२ चिन्तामणि नामक प्राकृत व्याकरण, २३ अंगपणत्ति (प्राकृत ), २४ अनेकस्तोत्र, २५ पड्वाद (?) और पाण्डवपुराण ।
पाण्डवपुराण वि० संवत् १६०८ में समाप्त हुआ है । अतएव इसके पहलेके रचे हुए ग्रन्थोंके ही नाम इस प्रशस्तिसे मालूम हो सकते हैं । पाण्डवपुराणके बाद भी उन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है और इसके प्रमाणमें हम दो ग्रन्थोंको पेश कर सकते हैं -एक तो स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा-टीका जो संवत् १६१३ में बनी है और दूसरा करकुंडुचरित जो सं० १६११ में बना है । संभव है, इनके सिवाय और भी कुछ ग्रन्थ इनके बाद बने हों।
कृता येनांगप्रज्ञप्तिः सर्वाङ्गार्थाप्ररूपिका । स्तोत्राणि च पवित्राणि षड्वादाः श्रीजिनेशिनाम् ॥ ७९ तन श्रीशुभचन्द्रदेवविदुषा सत्पाण्डवानां परम् । पुष्यत्पुण्यपुराणमत्र सुकरं चाकारि प्रीत्या महत् ।। ८. श्रीमद्विक्रमभूपतेर्द्विकहते स्पष्टाष्टसंख्ये शते रम्यष्टाधिकवत्सरे सुखकरे भाद्रे द्वितीयातिथौ । श्रीमद्वाग्वरनिर्वृतीदमतुले श्रीशाकवाटे पुर।
श्रीमच्छ्रीपुरुषाभिधे विरचितं स्थेयात्पुराणं चिरम् ॥ ८६ १ यह ग्रन्थ स्वर्गीय सेठ माणिकचन्दजीके ग्रन्थभण्डारमें मौजूद है । २ यह जैन सि० प्र० संस्थाद्वारा प्रकाशित हो चुका है । ३ सिद्धान्तसारादिसंग्रहमें प्रकाशित ।