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शानभूषण और शुभचन्द्र
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१२ पद्मनन्दि आदि । इनमेसे वादिभूषण तककी परम्पगका उल्लेख अध्यात्मतरंगिणीकी उस प्रतिके लिखनेवालेकी प्रशस्ति में मिलता है जो स्वर्गीय दानवीर संठ माणिकचन्दजीके सरस्वतीभण्डारमें मौजूद है और वादिभूषणके बादके भट्टारकोंका उलख बलात्कारगणकी गुवावलीमें है जो भ० नेमिचन्द्रकी बनाई हुई है । शुभचन्द्रकी पट्टावलीसे भी यही क्रम निश्चित होता है।
श्रीज्ञानभूषण सागबाड़े (बागड़ ) की गहीके भट्टारक पदपर आसीन थे। नन्दिसंघकी पट्टावलीसे मालूम होता है कि "वे गुजरातके रहनेवाले थे । गुजरात में उन्होंने सागारधर्म धारण किया, अहीर ( आभीर ) देशमें ग्यारह प्रतिमायें धारण की और वाग्वर या बागड़ देशमें दुर्धर महाव्रत ग्रहण किये । तौलव देशके यतियोंमें उनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई, तैलंग देशके उत्तम उत्तम पुरुषोंने उनके चरणोंकी बन्दना की, द्रविड़ देशके विद्वानोंने उनका स्तवन किया, महाराष्ट्रमें उन्हें बहुत यश मिला, सौराष्ट्र के धनी श्रावकोंने उनके लिए महामहोत्सव किया, रायदेश ( ईडरके आसपासका प्रान्त ) के निवासियोंने उनके वचनोंको अतिशय प्रमाण माना, मेदपाट ( मेवाड़ ) के मूर्ख लोगोंको उन्होंने प्रतिबोधित किया, मालवेके भव्य जनोंके हृदय-कमलको विकसित किया, मेवातमें उनके अध्यात्मरहस्यपूर्ण व्याख्यानसे विविध विद्वान् श्रावक प्रसन्न हुए, कुरुजांगलके लोगोंका
१ . संवत् १६५२ वर्षे ज्येष्ठद्वितीयकृष्णदशम्यां शुक्रे मूलसंघ सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दान्वये भ० श्रीपमनन्दि देवास्तत्पट्टे भ० सकलकीतिदेवास्तत्पट्टे भ० भुवनकीतिदेवास्तत्पट्टे भ० शानभूषणदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीविजयकीतिदेवास्तत्प? भ० शुमचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीसमुतिकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीगुणकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीवादिभूषणगुरुस्तच्छिष्य प० देवजी पठनार्थम् ।"
२ देखी, जैनसिद्धान्तभास्करकी प्रथम किरण, पृ० ४५-४६ ३ देखी जैन सि० भा० की चौथी किरण पृ० ४३-४५
४ नागचंद्रमरिने जो तौलवदेशके देवचंद्रमुनिके शिष्य थे विषापहारस्तोत्रटीका इन्हीं बागड देशके मण्डलाचार्य शानभूषणके बारबार कहनेसे बनाई थी- " बागडदेशमण्डलाचार्यशानभूषणदेवैर्मुहुरुपरुद्धः ।" इससे भी मालूम होता है कि वे तौलवदेशमें गये थे और वहाँके यतियोंने उनका सम्मान किया था। देखो, जैनहितैषी भाग १२, पृ० ९७-९९ में पं० जुगलकिशोरजीका इतिहास-प्रसङ्ग।
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