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जैनसाहित्य और इतिहास
पीछे उनके शिष्य गुणभद्राचार्यने पूरा किया। महापुराणके दो भाग है—एक आदिपुराण और दूसरा उत्तरपुराण । आदिपुराणमें प्रथम तीर्थकर आदिनाथ या ऋषभदेवका चरित है और उत्तरपुराणमें शेष २३ तीर्थंकरों और अन्य शलाका पुरुषोंका। आदिपुराणमें १२ हजार श्लोक और ४७ पर्व या अध्याय हैं । इनमेसे ४२ पर्व पूरे और ४३ वें पर्वके ३ श्लोक जिनसेनके और शेष चार वोंके १६२० श्लोक उनके शिष्यके हैं । इस तरह आदिपुराणके १०३८० श्लोकोंके कर्ता जिनसेन स्वामी हैं ।
आदिपुराण केवल पुराण ही नहीं है, ऊँचे दर्जेका महाकाव्य भी है । गुणभद्र स्वामीने उसकी प्रशंसामें कहा है कि यह सारे छन्दों और अलंकारोंको लक्ष्यमें रखकर लिखा गया है, इसकी रचना सूक्ष्म अर्थ और गूढ़ पदोंवाली है, इसमें बड़े बड़े विस्तृत वर्णन हैं, जिनको पढ़नेसे तमाम-शास्त्रोंका साक्षात् हो जाता है, इसके सामने दूसरे काव्य नहीं ठहर सकते, यह श्रव्य है, व्युत्पन्नबुद्धिवालोंके द्वारा ग्रहण करने योग्य है, और अतिशय ललित है'।
आदिपुराण सुभाषितोंका भी भंडार है । जिस तरह बहुमूल्य रत्नोंका उत्पत्तिस्थान समुद्र है, उसी तरह सूक्त-रत्नोंका भण्डार यह पुराण है । जो अन्यत्र दुर्लभ हैं, ऐसे सुभाषित इसमें सुलभ हैं और स्थान स्थानसे इच्छानुसार संग्रह किये जा सकते हैं।
१-सकलच्छन्दोलङ्कृतिलक्ष्यं सूक्ष्मार्थगूढपदरचनम्
व्यावर्णनोरु सारं साक्षात्कृतसर्वशास्त्रसद्भावम् । अपहस्तितान्यकाव्यं श्रव्यं व्युत्पन्नमतिभिरादेयम्
जिनसेनभगवतोक्तं मिथ्याकविदर्पदलनमतिललितम् ॥... २-यथा महायरत्नानां प्रसूतिर्मकरालयात् ।।
तथैव सूक्तरत्नानां प्रभवोऽस्मात्पुराणतः ॥ १६ ॥ सुदुर्लभं यदन्यत्र चिरादपि सुभाषितम् ।
सुलभं स्वैरसंग्राह्यं तदिहास्ति पदे पदे ॥ १७ ॥ -उ० पु० प्र० विद्वद्रत्नमालामें मैंने आदिपुराणके भी अनेक पद्य बानगीके तौर पर सानुवाद उद्धृत किये
, पृष्ठ ६७-७०