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________________ ५०० जैनसाहित्य और इतिहास लोकसेनके सिवाय गुणभद्रस्वामीके और भी अनेक शिष्य थे; परन्तु हमें उनका पता नहीं। वीरसेन स्वामीके जिनसेनके सिवाय दशरथ गुरु नामके एक शिष्य और थे और गुणभद्रने अपनेको इन दोनोंका ही शिष्य बतलाया है।' वीरसेनके एक और शिष्य विनयसेन नामके भी थे जिनकी प्रेरणासे जिनसेनने पार्वाभ्युदय काव्यकी रचना की थी और दर्शनसारके कर्त्ता देवसेनके कथनानुसार जिनके शिष्य कुमारसेनने आगे चलकर काष्ठासंघकी स्थापना की थी। जिनसेन स्वामीने जयधवला टीकामें श्रीपाल, पद्मसेन, और देवसेन नामके तीन विद्वानोंका उल्लेख और भी किया है । संभवतः ये भी उनके सधर्मा या गुरुभाई १–स श्रीमान् जिनसेनपूज्यभगवत्पादो जगन्मंगलम् ।...८ दशरथगुरुरासीत्तस्य धीमान्सधर्मा...... शिष्यः श्रीगुणभद्रसूरिरनयोरासीजगद्विश्रुतः ॥१४...उत्तरपुराण प्र० २–श्रीवीरसेनमुनिपादपयोजभंगः श्रीमानभूद्विनयसेनमुनिर्गरीयान् । तच्चोदितेन जिनसेनमुनीश्वरेण काव्यं व्यधायि परिवोष्टितमेघदूतम् ।। -सिरिवीरसेणसिस्सो जिणसेणो सयलसत्थविणाणी। सिरिपउमणंदिपच्छा चउसंघसमुद्धरणधीरो ॥ ३१ ॥ तस्स य सिस्सो गुणवं गुणभद्दो दिव्वणाण-परिपुण्णो । पक्खोववासमंडियमहातवो भावलिंगो य ॥ ३२ ॥ तेण पुणोवि य मिच्छु णाऊण मुणिस्स विणयसेणस्स । सिद्धत घोसित्ता सयं गयं सग्गलोयस्स ।। ३३ ॥ आसी कुमारसेणो णंदियडे विणयसेणदिक्खयओ... सो सवणसंघवज्झो कुमारसेणो दु समयामिच्छत्तो। चत्तोवसमो रुद्दो कटं संघ परूवेदि ।। ३५ ॥ -सर्वज्ञप्रतिपादितार्थगणभृत्सूत्रानुटीकामिमां येऽभ्यस्यन्ति बहुश्रुताः श्रुतगुरुं संपूज्य वीरप्रभुम् । ते नित्योज्ज्वलपद्मसेनपरमाः श्रीदेवसेनार्चिताः भासन्ते रविचन्द्रभासिसुतपःश्रीपालसत्कीर्तयः ॥ ४४ ॥-जयधवला
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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