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नेमिचरित-काव्य
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अनुमान किया था कि उक्त सांगणके ही पुत्र और ऋषभदासके भाई थे विक्रम होंगे परन्तु अभी हाल ही मालूम हुआ है कि नेमिचरितकी एक प्रति वि० सं० १६०२ की लिखी हुई बालूचरके गट्ठबाबूके संग्रहमे मौजूद है, इस लिए विक्रम कवि ऋषभदासके भाई नहीं हो सकते । इसके सिवाय ऋषभदासने अपने किसी ग्रन्थमें विक्रमका कोई जिक्र भी नहीं किया है।
खंभातके चिन्तामणि-पार्श्वनाथमन्दिरमें एक विस्तृत शिलालेख है' जो वि. सं० १३५२ का है। इस लेखके २८ वे से लेकर ३१ वें नम्बर तकके पद्योंमें मालवा, सपादलक्ष और चित्रकूट (चित्तोड़ ) से खंभातमें आये हुए सांगण, जयता और प्रल्हादन आदि धनी श्रावकोंका उल्लेख है जिन्होंने उक्त मन्दिरकी निरन्तर पूजा होते रहने के लिए व्यापारपर कुछ लाग बाँध दी थी। इनमेंस सांगण हुंकारवंश ( हूँबड़ ) के और जयता सिंहपुरवंश ( नरसिंहपुरा ) के थे । संभव है कि इनमेंसे पहले श्रावक सांगणके ही पुत्र विक्रम हों और ये सांगण आदि दिगम्बर सम्प्रदायके मालूम होते हैं। क्योंकि इस लेखके चौथे पद्यमें सहस्रकर्तिका और सत्ताईसवें पद्यमें यशःकीर्ति गुरुका उल्लेख है और ये दोनों दिगम्बर साधु हैं। इसके सिवाय हूँबड़ और नरसिंहपुरा जातियोंके श्रावक इस समय भी अधिकांशमें दिगम्बर आम्नायक अनुयायी हैं।
यों काव्यके विषयसे तो कवि श्वेतांबर या दिगम्बर किस सम्प्रदायका था, इसका कुछ पता नहीं लगता क्योंकि काव्यमें जो कुछ कहा गया है वह साम्प्रदायिक मत-भेदकी सीमासे बाहर है।
१ देखो, मुनि श्रीजिनविजयजी सम्पादित : प्राचीन-जैन-लेखसंग्रह ' का ४४९ नं० का शिलालेख । इस लेखकी बहुत-सी पंक्तियोंका कुछ अंश नष्ट हो गया है। प्राचीन मन्दिर शायद वि० स० ११६५ में बना था और १३५२ में उसका जीर्णोद्धार हुआ है जब कि यह लेख उत्कीर्ण हुआ। २ हुंकारवंशजमहर्घमणीयमानः श्रीसाङ्गणः प्रगुणपुण्यकृतावतारः ।
तोरेशसन्निभयशो जिनशासना) निःशेषकल्मषविनाशनभव्यवर्णः ॥ सिंहपुरवंशजन्मा जयताख्यो विजित एनसः पक्षः ।....इत्यादि ।
अबागमन्मालवदेशतोऽमी सपादलक्षादथ चित्रकूटात् ।... ३ दिनोदयं स चक्रे गुरुजगताभ्युदितः सहस्रकीर्तिः ॥ ४ गुरुपदे बुधैवयों यशःकीर्तिः यशोनिधिः ।