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________________ जैनसाहित्य और इतिहास श्वेताम्बराचार्य मेघविजयजीने अपने युक्तिप्रबोध में अमृतचन्द्र के नामसे कई पद्य उद्धृत किये हैं । उनमें भी नीचे लिखे दो पद्य प्राकृतके हैं । अतएव इनसे भी हमने अनुमान किया था कि अमृतचन्द्रका कोई प्राकृत ग्रन्थ होगा ८८ ४६० - यदुवाच अमृतचन्द्रः सव्वे भावा जम्हा पच्चक्वाई परित्ति नाऊण । तम्हा पच्चक्खाणं गाणं णियमा मुणेयव्वं ॥ "" -" श्रावकाचारे अमृतचन्द्रोप्याह - सातवीं गाथाकी टीका संघो कोविन तारइ कट्टो मूलो तहेव निम्पिच्छो । अप्पा तारइ अप्पा तम्हा अप्पा दु झायव्वो || " इनमेंसे पिछली गाथा तो ' ढाढसी गाथा' नामक ग्रन्थकी है, अमृतचन्द्रकी नहीं । इसी तरह पहली गाथा भी अमृतचन्द्र के किसी ग्रन्थमें नहीं मिलती, यह भी किसी प्राचीन ग्रन्थकी जान पड़ती है और इसे भी अमृतचन्द्र की बतलाने में मेघविजयजीका कुछ प्रमाद हुआ है । , ' ढाढसी गाथा ३८ गाथाओंका एक छोटा-सा प्रकरण है । बम्बईकी रायल एशियाटिक सोसाइटीकी लाइब्रेरी में जो हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है उसमें इसकी एक संस्कृतटीकासहित प्रति ( नं० १६१० ) भी है। अभी हाल ही हमने बड़ी उत्सुकता से इस प्रतिको देखा । सोचा कि टीकासे शायद इसके कर्त्ता आदि के विषय में कोई नई बात मालूम हो । परन्तु निराश होना पड़ा । उसमें न तो टीकाकर्त्ताने अपना नाम ही दिया है और न मूलके विषय में ही कुछ लिखा है । अन्तमें इतना ही लिखा है -" इति ढाढसीमुनीनां विरचिता गाथा सम्पूर्णा । मालूम नहीं, ये ढाढसी मुनि कौन हैं और कब हुए हैं । ढाढसी नाम भी बड़ा अद्भुत-सा है । "" इस ग्रन्थमें काष्ठासंघ, मूलसंघ और निः पिच्छिक ( माथुर ) संघों का उल्लेख है और इनमें से अन्तिम माथुर संघकी उत्पत्ति देवसेनसूरि के दर्शनसार में वि० सं० ९५३ के लगभग बतलाई गई है । यदि वह सही है तो यह ग्रन्थ विक्रमकी ग्यारहवीं सदीके पहलेका नहीं हो सकता । परन्तु इससे अमृतचन्द्र के समय - निर्णय में कोई सहायता नहीं मिल सकती । हाँ, यदि अमृतचन्द्रने अपने किसी ग्रन्थर्मे उक्त ‘ संघो कोवि ' आदि गाथा उद्धृत की हो और उस उद्धृत गाथाको ही मेघविजयजीने उनकी समझ लिया हो, तो फिर इससे भी ढाढसी गाथाके बाद १२ वीं शताब्दिका अमृतचन्द्रको मान सकते हैं । ,
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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