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________________ आचार्य शुभचन्द्र और उनका समय ४५१ पद्य 'उक्तं च' करके दिया है परन्तु छपी हुई प्रतिमें यह मूलमें ही शामिल कर लिया गया है। _ 'ध्येयं स्याद्वीतरागस्य' आदि पद्य छपी प्रतिके ४०७ पृष्ठमें 'उक्तं च' है परन्तु पूर्वोक्त सटीक प्रतिमें इसे 'उक्तं च' न लिखकर इसके आगेके 'वीतरागो भवेद्योगी' पद्यको 'उक्तं च' लिखा है और छपीमें तथा वचनिकामें भी, दोनोंको ही 'उक्तं च । 'उक्तं च' पद्योंके सम्बन्धमें छपी और सटीक तथा वचनिकावाली प्रतियों में इसी तरह और भी कई जगह फ़र्क है, जो स्थानाभावसे नहीं बतलाया जा सका। अभिप्राय यह है कि ज्ञानार्णवकी छपी प्रतिमें हेमचन्द्रके योगशास्त्रके उक्त दो पद्योंके रहनेसे यह सिद्ध नहीं होता कि शुभचन्द्राचार्यने स्वयं ही उन्हें उद्धृत किया है और इस कारण वे हेमचन्द्र के पीछेके हैं । इसके लिए कुछ और पुष्ट प्रमाण चाहिए। पाटणके भंडारकी उक्त प्राचीन प्रति तो बहुत कुछ इसी ओर संकेत करती है कि ज्ञानार्णव योगशास्त्रसे पीछेका नहीं है । नोट-अबसे कोई चौंतीस वर्ष पहले ( जुलाई सन १९०७ में ) मैने ज्ञानार्णवकी भूमिकामें 'शुभचन्द्रार्चायका समय-निर्णय' लिखा था और विश्वभूषण भट्टारकके 'भक्तामरचरित'को प्रमाणभूत मानकर धाराधीशभोज, कालिदास, वररुचि, धनंजय, मानतुंग, भर्तृहरि आदि भिन्न भिन्न समयवर्ती विद्वानोंको समकालीन बतलानेका प्रयत्न किया था । परन्तु जब पिछले भट्टारकोंद्वारा निर्मित अधिकांश कथा-साहित्यकी ऐतिहासिकतापर सन्देह होने लगा, तब उक्त भूमिका लिखनेके कोई आठ नौ वर्ष बाद दिगम्बर जैनके विशेषाङ्क ( श्रावण संवत् १९७३ ) में 'शुभचन्द्राचार्य ' शीर्षक लेख लिखकर मैंने पूर्वोक्त बातोंका प्रतिवाद कर दिया, परन्तु ज्ञानार्णवकी उक्त भूमिका अब भी ज्योंकी त्यों पाठकोंके हाथोंमें जाती है । मुझे दुःख है कि प्रकाशकोंसे निवेदन कर देने पर भी वह निकाली नहीं गई और इस तीसरी आवृत्तिमें भी बदस्तूर कायम है । विद्वान् पाठकोंसे निवेदन है कि 'भक्तामरचरित' की कथाका खयाल न करके ही वे श्रीशुभचन्द्राचार्यका ठीक समय निर्णय करनेका प्रयत्न करें ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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