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________________ ३८४ जैनसाहित्य और इतिहास विश्वास है कि वे सब स्वयं स्वयंभुके हैं और खोज करनेसे रिहणेमिचरिउ और पउमचरिउमें उनमेसे अनेक पद्य मिल जायेंगे । २ रिहणमिचरिउके प्रारंभमें पूर्व कवियोंने उन्हें क्या क्या दिया, इसका वर्णन करते हुए कहा है कि श्रीहर्षने निपुणत्व दिया-" सिरिहरिसें णियणि. उणत्तणउ ।” और श्रीहर्षके इसी निपुणत्वके प्रकट करनेवाले संस्कृत पद्यके एक चरणको स्वयंभु छन्दमें ( १-१४४) उद्धृत किया गया है-" जह ( यथा)-श्रीहर्षो निपुणः कविरित्यादि ।” चूँकि यह पद्य श्रीहर्षके नागानन्द नाटककी प्रस्तावनामें सूत्रधारद्वारा कहलाया गया है और बहुत प्रसिद्ध है, इसलिए कविने इसे पूरा देनेकी जरूरत नहीं समझी । परन्तु इससे यह सिद्ध हो जाता है कि स्वयंभुछन्दके कर्ता और पउमचरिउके की एक ही हैं, जो श्रीहर्षके निपुणत्वको अपने दोनों ग्रन्थों में प्रकट करते हैं। ३ स्वयंभुदेवको उनके पुत्रने 'छन्दचूडामणि' कहा है। इससे भी अनुमान होता है कि वे छन्दशास्त्रके विशेषज्ञ थे और इसलिए उनका कोई छन्दो ग्रन्थ अवश्य होना चाहिए। __ स्वयंभु छन्दमें माउरदेवके कुछ पद्य उदाहरणस्वरूप दिये हैं और अधिक संभावना यही है कि ये माउरदेव या मारुतदेव कविके पिता ही होंगे। अपने पिताके पद्योंका पुत्रके द्वारा उद्धृत किया जाना सर्वथा स्वाभाविक है । पूर्ववर्ती कविगण इस छन्दोग्रन्थमें प्राकृत और अपभ्रंश कवियोंके नाम देकर जो उदाहरण दिये हैं उनसे इन दोनों भाषाओंके उस विशाल साहित्यका आभास मिलता है जो किसी समय अतिशय लोकप्रिय था और जिसका अधिकांश लुप्त हो चुका है। यहाँ हम उन कवियोंके नाम देकर ही सन्तोष करेंगेप्राकृत कवि-वम्हअत्त (ब्रह्मदत्त ), दिवायर ( दिवाकर ), अंगारगण, १ श्रीहर्षो निपुणः कविः परिषदेप्येषा गुणग्राहिणी, लोके हारि च सिद्धराजचरितं नाट्ये च दक्षा वयम् । वस्त्वैकैकमपीह वांछितफलप्राप्तैः पदं कि पुनमद्भाग्योपचयादयं समुदितः सर्वो गुणानां गणः ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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