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जैन साहित्य और इतिहास
दिया गया है' । स्वयंभु गृहस्थ थे, साधु या मुनि नहीं, जैसा कि उनके ग्रन्थोंकी कुछ प्रतियों में लिखा मिलता है । ऐसा जान पड़ता है कि उनकी कई पत्नियाँ थीं जिनमेंसे दोका नाम पउमचरिउमें मिलता है – एक तो आईचंबा ( आदित्याम्बा ) जिसने अयोध्याकाण्ड और दूसरी सामिअब्बा, जिसने विद्याधरकाण्ड लिखाया था । संभवतः ये दोनों ही सुशिक्षिता थीं ।
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स्वयंभुदेवके अनेक पुत्र थे जिनमें से सबसे छोटे त्रिभुवन स्वयंभुको ही हम जानते हैं । उक्त दो पत्नियोंमेंसे ये किसके पुत्र थे, इसका कोई उल्लेख नहीं मिला । सभव है कि पूर्वोक्त दोके सिवाय कोई तीसरी ही उनकी माता हो । नीचे लिखे श्लिष्ट पद्यसे अनुमान होता है कि त्रिभुवन स्वयंभुकी माता और स्वयंभुदेवकी तृतीय पत्नीका नाम शायद ' सुअव्वा' हो -
सव्वे वि सुआ पंजरसुअ व्व पढि अक्खराई सिक्खति । कइराअस्स सुओ सुअव्व- सुइ-गब्भसंभूओ ||
अपभ्रंशमें सुअ शब्दसे सुत ( पुत्र ) और शुक्र ( सुअ = तोता ) दोनों का ही बोध होता है । इस पद्य में कहा है कि सारे ही सुत पींजरेके सुओंके समान पढ़े हुए ही अक्षर सीखते हैं; परन्तु कविराजका सुत ( त्रिभुवन) श्रुत इव श्रुतिगर्भसंभूत है । अर्थात् जिस तरह श्रुति ( वेद ) से शास्त्र उत्पन्न हुए उसी तरह दूसरे पक्ष में त्रिभुवन सुअव्वसुइगब्भसंभू है, अर्थात् सुब्बाके शुचिगर्भमे उत्पन्न हुआ है 1 कविराज स्वयंभु शरीरसे बहुत पतले और ऊँचे थे । उनकी नाक चपटी और दाँत विरल थे ।
स्वयंभुदेवने अपने वंश गोत्र आदिका कोई उल्लेख नहीं किया । इसी तरह अन्य जैन ग्रन्थकर्त्ताओं के समान अपने गुरु या सम्प्रदायकी भी कोई चर्चा नहीं की । परन्तु पुष्पदन्तके महापुराणके टिप्पण में उन्हें आपुलीसंघीय बतलाया है ।" इस लिए वे यापनीय सम्प्रदाय के अनुयायी जान पड़ते हैं । पर उन्होंने पउमचरिउके
१ - उमित्त भमंतेण रअणाअरचदेण ।
सो सिते सिजइ वि तह भरइ भरतेण ॥ ४-९
२ - ३ - देखो पउमचरिउ सन्धि ४२ और २० के पद्य । ४ - अइतगुण पईहरगत्ते, छिव्वरणासें पविरलदंतें । ५ सयंभु पद्धडीवद्धकर्त्ता आपली संघीयः । म० पु० पृ० ९ ।