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________________ वनवासी और चैत्यवासी सम्प्रदाय ३६१ शताब्दिके लगभग हो गया था। यह तो नहीं कहा जा सकता कि मठवासियोंके समयमें शुद्धाचारी और तपस्वी दिगम्बर मुनियोंका सर्वथा अभाव ही हो गया होगा, अथवा सारा जनसमुदाय उन्हींका अनुयायी बन गया होगा । शुद्ध शास्त्रोक्त आचारके पालनेवाले और उनकी उपासना करनेवाले भी रहे होंगे, फिर भी वे विरल ही होंगे । जैसा कि पं० आशाधरजीने कहा है -- 'अफसोस है, सच्चे उपदेशक मुनि जुगनूके समान कहीं कहीं ही दिखलाई देते हैं'' खद्योतवत् सुदेष्टारो हा द्योतन्ते क्वचित् क्वचित् ।' दिगम्बर चैत्यवासी नग्न रहते थे ऐसा मालूम होता है कि चैत्यबासी या मठपति हो जाने पर भी प्राचीन कालके दिगम्बर सम्प्रदायके साधु नग्न ही रहते थे और श्वेताम्बर सवस्त्र साधुओंसे अपना पृथक्त्व प्रकट करने के लिए शायद यह आवश्यक भी था। पण्डितप्रवर आशाधरने अपने अनगार धर्मामृतके दूसरे अध्यायमें इन चैत्यवासी परन्तु नम-साधुओंकी स्पष्ट चर्चा की है और कहा है कि सम्यक्त्वके आराधकको १- मुद्रां सांव्यवहारिकी त्रिजगतीवन्द्यामपोद्याहतीं, वामां केचिदहंयवो व्यवहरन्त्यन्ये बहिस्तां श्रिताः । लोकं भूतवदाविशन्त्यवशिनस्तच्छायया चापरे, म्लेच्छन्तीह तकैस्त्रिधा परिचयं पुदेवमोबस्त्यज ।। ९६ ।। टीका । इहक्षेत्रे सम्प्रति काले केचित्तापसादयो व्यवहरन्ति प्रवृत्तिनिवृत्तिविषयां कुर्वन्ति । काम् , मुद्रां व्रतचिह्नम् । किं विशिष्टाम् , वामां विपरीतां जटाधारणभस्मोद्धलनादिरूपाम् । कि विशिष्टाः सन्तः, अहंयवोऽहंकारिणः । कि कृत्वा, अपाद्य अपवादविषयां कृत्वा निषिद्धयेत्यर्थः । काम् , मुद्रान् । किविशिष्टाम् , आहती जैनीमाचेलक्यादिलिङ्गलक्षणाम् । पुनः किविशिष्टाम् , त्रिजगतीवन्द्यां जगत्रयनमस्याम् । पुनरपि कि विशिष्टान् , सांव्यवहारिकी समीचीनप्रवत्तिनिवृत्तिप्रयोजनाम् । पक्षे, टंकादिनाणकाकृति समीचीनामपोद्य मिथ्यारूपां क्षुद्रां व्यवहरन्तीति व्याख्येयं । अन्ये पुनद्रव्यजिनलिङ्गधारिणी मुनिमानिनोऽवशिनोऽजितेन्द्रियः सन्तस्तां तथाभूतामार्हती मुद्रां बहि:शरीरे न मनसि श्रिताः प्रपन्ना आविशन्ति संक्रामंति विचेष्टयन्तीत्यर्थः । कन् , लोकं धर्मकामं जनम् । किंवत् , भूतवद् ग्रहस्तुल्यम् । अपरे पुनर्द्रव्यजिनलिंगधारिणो मठपतयो म्लेच्छन्ति म्लेच्छा इवाचरन्ति । लोकशास्त्रविरुद्धमाचार चरन्तीत्यर्थः । कया, तच्छायया आहेतगतप्रतिरूपेण । तथा च पठन्ति--
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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