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________________ साम्प्रदायिक द्वेषका एक उदाहरण ३४३ उसने शारदाको वाचाल भी कर दिया। वह बोली, 'पद्मनन्दि जो कहते हैं वही सत्य है !' पद्मनन्दिने चूँकि सरस्वतीको बलात्कारसे बुलवाया, इसलिए उसका सरस्वती गच्छ और बलात्कार गण प्रसिद्ध हुआ। “ एक बार पापी पद्मनन्दिने मंत्र सिद्ध करते समय बलिदानके निमित्त एक मयूरको मार डाला और वह मयूर मरकर व्यन्तर देव हुआ। पूर्व वैरसे वह पद्मनन्दिको नाना प्रकारके वात-पित्त-कफजन्य असाध्य रोगोंसे पीड़ित करने लगा और प्रत्यक्ष होकर बोला, 'रे पापी, तूने मुझे मारा था इसलिए अब मैं भी तुझे मारूंगा।' इसपर पद्मनन्दिके शिष्यों-मुनियों और श्रावकोंने-उसके आगे बहुत ही आरजू मिन्नत की । जब वह प्रसन्न हुआ तो बोला, 'आगेसे तुम्हें गोपुच्छ छोड़कर मेरी पूँछ (मयूर-पुच्छ) धारण करके मेरे नामसे अपने संघको प्रसिद्ध करना होगा।' इसे पद्मनन्दिने स्वीकार कर लिया और उसी समयसे मयूरसंघकी स्थापना हुई । ___ " एक बार पद्मनन्दि अपने पैरोंमें एक ओषधिका लेप करके अन्तर्धान हो गया और कुछ समयके बाद लौट आया । श्रावकोंके पूछनेपर उसने कहा, मैं विदेह क्षेत्रमें सीमंधर स्वामीके समवसरणमें गया था और उनके मुखसे उपदेश सुनकर लौटा हूँ । मूर्ख श्रावकोंने उसकी बातोंपर विश्वास कर लिया। उन्होंने यह नहीं सोचा कि पंचमकालमें कोई मनुष्य विदेह-क्षेत्रको कैसे जा सकता है ? शास्त्रमें इसका निषेध है। __“जब पद्मनन्दि मंत्र-तंत्रादिके बलपर बहुत अन्यायाचरण करने लगा तब उसके गुरुने और श्रावकोंने उसे अपने देशसे निकाल दिया और वह कर्नाटकमें जाकर चार गच्छोंकी कल्पना करके और चारों वर्गों के लोगोंको संबोधित करके रहने लगा। वहाँ उसने स्वेच्छाचारिता छोड़ दी जिससे उसकी खूब प्रसिद्धि हुई।" __ मूलसंघकी उत्पत्तिकी कथाका यही सार है। इसमें मयूरशृंगी, मयूरसंघ, नन्दिसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण और चार गच्छोंकी सार्थकता सिद्ध करनेके लिए कथाकारकी कल्पनाको कितने चक्कर काटने पड़े हैं और वह कितनी बेडौल हो गई है, यह प्रत्येक बुद्धिमान् पाठक समझ सकता है । __ यह कथा और पूर्वोक्त गुटकेके साथ किया गया अत्याचार, इस बातके प्रमाण हैं कि हमारे गुरु और आचार्य कहलानवाल भी अपनी कलमका कहाँतक दुरुपयोग कर सकते हैं । भगवान् पद्मनन्दि या कुन्दकुन्दाचार्य जैसे महापुरुषों
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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