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________________ ३३८ जैनसाहित्य और इतिहास श्रीजयसिंहदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिप्रणामोपार्जितामलपुण्यनिराकृताखिलमलकलंकेन श्रीप्रभाचंद्रपंडितेन महापुराणटिप्पणकं शतत्र्यधिकसहस्रत्रयपरिमाणं कृतमिति' । इससे मालूम होता है कि यह टिप्पण धारानिवासी पं० प्रभाचन्द्रने जयसिंह - देवके ( परमारनेरश भोजदेवके उत्तराधिकारीके ) राज्यमें रचा है । आदिपुराणके टिप्पण में यद्यपि धाराका और जयसिंहदेव के राज्यका उल्लेख नहीं है और इसका कारण यह है कि आदिपुराण स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है, महापुराणका ही अंश है परन्तु वह है इन्ही प्रभाचंद्रका | इसी उत्तरपुराण- टिप्पणकी एक प्रति आगरेके मोतीकटरेके मंदिर में है जो कुछ समय पहले साहित्यसन्देश के सम्पादक श्रीमहेन्द्रजीके द्वारा हमें देखनेको मिली थी । उसकी पत्रसंख्या ३३ है और उसका दूसरा और ३२ वाँ पत्र नष्ट हो गया है । उसमें ३३ वें पत्रका प्रारंभ इस तरह है— मेषः || ९ साइवइ स्वातिस्थाने || १० अणिवऊ अनुक्तस्वरूपः । वसुसम - गुणसरीरु सम्यक्त्वाद्यष्टगुणस्वरूपः । हयत्तिउ हतार्तिः || ११ पढिवि पाठं गृहणम् । मामइएं कविवरस्य नामेदम् | सोत्तें प्रवाहेण || इसके आगे वह श्लोक और प्रशस्ति है जो ऊपर दी जा चुकी है । यह उत्तर पुराण- टिप्पण श्रीचन्द्र के उत्तरपुराणसे भिन्न है । क्योंकि उसके अंतके टिप्पण प्रभाचंद्र के टिप्पणोंसे नहीं मिलते। प्रभाचंद्र के टिप्पणका अंश ऊपर दिया गया है । श्रीचंद्र के टिप्पणका अंतिम अंश यह है देसे सारए इतिसम्बन्धः । पढम ज्येष्ठा । निरंगु कामः । मुई मूकी । जलमंथणु अन्तिमकल्किनो नामेदं । विरसेसइ गजिष्यति । पढेवि पाठग्रहणनामेदं इसके आगे ही ' श्रीविक्रमादित्यसंवत्सरे ' आदि प्रशस्ति है ! श्रीचंद्र के उत्तरपुराण - टिप्पण की लोकसंख्या १७०० है जब कि प्रभाचंद्र के टिप्पणकी १३५० | क्योंकि प्रभाचन्द्र के सम्पूर्ण महापुराण- टिप्पणकी लोकसंख्या ३३०० बतलाई गई है और आदिपुराणकी १९५० । ३३०० मेंसे आ० पु० टि० की १९५० संख्या बाद देनेसे १३५० संख्या रह जाती है । जिस तरह श्रीचंद्रके बनाये हुए कई ग्रन्थ हैं जिनमें से तीनका परिचय ऊपर १ यह ग्रंथ जयपुरके पाटोदीके मंदिर के भंडारका है ( ग्रन्थ नं० २३३ ) | आगरे के मोती कटरेके मन्दिरकी प्रतिमें भी प्रशस्तिका यही पाठ है ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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