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महाकवि पुष्पदन्त
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एक जगह पुष्पदन्तने लिखा भी है कि वे वल्लभराजके कटकके नायक अर्थात् सेनापति हुए थे । इसके सिवाय वे राजाके दानमंत्री भी थे । इतिहासमें कृष्ण तृतीयके एक मंत्री नारायणका नाम तो मिलता है, जो कि बहुत ही विद्वान्
और राजनीतिज्ञ था परन्तु भरत महामात्यका अब तक किसीको पता नहीं । क्योंकि पुष्पदन्तका साहित्य इतिहासज्ञोके पास तक पहुँचा ही नहीं ।
पुष्पदन्तने अपने महापुराणमें भरतका बहुत कुछ परिचय दिया है । उसके सिवाय उन्होंने उसकी अधिकांश सन्धियोंके प्रारम्भमें कुछ प्रशस्तिपद्य पीछेसे भी जोड़े हैं जिनकी संख्या ४८ है। उनमेंसे छह ( ५, ६, १६, ३०, ३५, ४८) तो शुद्ध प्राकृतके हैं और शेष संस्कृतके । इनमेंसे ४२ पद्योंमें भरतका जो गुणकीर्तन किया गया है, उससे भी उनके जीवनपर विस्तृत प्रकाश पड़ता है। उक्त सारा गुणानुवाद हो सकता है कि कवित्वपूर्ण होनेके कारण अतिशयोक्तिमय हो, परन्तु कविके स्वभावका देखते हुए उसमें सचाई भी कम नहीं जान पड़ती।
व सारी कलाओं और विद्याओंमें कुशल थे, प्राकृत कवियोंकी रचनाओंपर मुग्ध थे, उन्होंने सरस्वती सुरभिका दूध पिया था। लक्ष्मी उन्हें चाहती थी। वे सत्यप्रतिज्ञ और निर्मत्सर थे । युद्धोंका बोझ ढोते ढोते उनके कन्धे घिस गये
१ सायं श्रीभरतः कलङ्करहितः कान्तः सुवृत्तः शुचिः,
सज्ज्योतिर्मणिराकरो प्लुत इवानो गुणैर्भासते । वंशो येन पवित्रतामिह महामात्याह्वयः प्राप्तवान्,
श्रीमद्लभराजशक्तिकटके यश्चाभवन्नायकः । २ हं हो भद्र प्रचण्डावनिपतिभवने त्यागसंख्यानकर्ता,
कोऽयं श्यामः प्रधानः प्रवरकरिकराकारबाहुः प्रसन्नः। धन्यः प्रालेयपिण्डोपमधवलयशो धौतधात्रीतलान्तः,
ख्यातो बन्धुः कवीनां भरत इति कथं पान्थ जानासि नो त्वम् ।। ३ देखो सालौटगीका शिलालेख, इं० ए० जिल्द ४, पृ० ६० ।
४ बम्बईके सरस्वती-भवनमें महापुराणकी जो बहुत ही अशुद्ध प्रति है उसक ४२ वीं सन्धिके बाद एक — हरति मनसो मोहं ' आदि अशुद्ध पद्य अधिक दिया हुआ है जान पड़ता है अन्य प्रतियोंमें शायद इस तरहके और भी कुछ पद्य होंगे।