________________
३०४
जैनसाहित्य और इतिहास
ही थे' । क्यों कि एक तो दोनों ही काश्यप गोत्रीय हैं और दूसरे दोनोंके समयमें भी अधिक अन्तर नहीं है ।
केशवभट्टके एक पुत्र पुष्पदन्त होंगे और दूसरे नागदेव । पुष्पदंत निष्पुत्रकलत्र थे, परन्तु नागदेवको श्रीपति जैसे महान् ज्योतिषी पुत्र हुए। यदि यह अनुमान ठीक हो, तो श्रीपतिको पुष्पदन्तका भतीजा समझना चाहिए । __पुष्पदन्त मूलमें कहाँके रहनेवाले थे, उनकी रचनाओंमें इस बातका कोई उल्लेख नहीं मिलता । परन्तु उनकी भाषा बतलाती है कि वे कर्नाटकके या उससे और दक्षिणके द्रविड़ प्रान्तोंके तो नहीं थे । क्योंकि एक तो उनकी सारी रचनाओंमें कनड़ी और द्रविड़ भाषाओंके शब्दोंका अभाव है, दूसरे अब तक अपभ्रंश भाषाका ऐसा एक भी ग्रंथ नहीं मिला है जो कर्नाटक या उसके नीचेके किसी प्रदेशका बना हुआ हो। अपभ्रंश साहित्यकी रचना प्रायः गुजरात, मालवा, बरार और उत्तरभारतमें ही होती रही है। अतएव अधिक संभव यही है कि वे इसी ओरके हों।
श्रीपति ज्योतिषी रोहिणीखेडके रहनेवाले थे और रोहिणीखेड बरारके बुलढाना जिलेका रोहनखेड़ नामका गाँव जान पड़ता है।' यदि श्रीपति सचमुच ही पुष्प१ भट्टकेशवपुत्रस्य नागदेवस्य नन्दनः, श्रीपती रोहिणीख(खे)डे ज्योति:शास्त्रमिदं व्यधात् ।
-ध्रुवमानसकरण। २ ज्योतिषरत्नमालाकी महादेवप्रणीत टीकामें श्रीपतिका काश्यप गोत्र बतलाया है" काश्यपवंशपुण्डरीकखण्डमार्तण्ड: केशवस्य पौत्रः नागदेवस्य सूनुः श्रीपतिः संहितार्थमाभधातुरिच्छुराह-"
३ महामहोपाध्याय पं० सुधाकर द्विवेदीने अपनी 'गणिततरांगणी'में श्रीपतिका समय श० सं० ९२१ बतलाया है और स्वयं श्रीपतिने अपने ‘धीकोटिदकरण में अर्हगणसाधनके लिए श० सं० ९६१ का उपयोग किया है जिससे अनुमान होता है कि वे उक्त समय तक जीवित थे । ध्रुवमानसकरणके सम्पादकने श्रीपतिका समय श० सं० ९५० के आसपास बतलाया है । पुष्पदन्त श० सं० ८९४ की मान्यखेटकी लूट तक बल्कि उसके भी बाद तक जीवित थे । अतएव दोनोंके बीच जो अन्तर है, वह इतना अधिक नहीं है कि चचा और भतीजेके बीच संभव न हो । श्रीपतिने उम्र भी शायद अधिक पाई हो ।
४ बुलढाना जिलेके गजेटियरसे पता चला है कि इस रोहनखेडमें ईसाकी १५-१६ वीं शताब्दिमें खानदेशके सूबेदारों और बहमनी खान्दानके नवाबोंके बीच अनेक लड़ाइयाँ हुई है।