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चामुण्डराय और उनके समकालीन आचार्य
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गोम्मटसार तो चामुण्डरायकी ही प्रेरणासे उन्होंने बनाया है और जैसा कि पहले कहा जा चुका है उन्हींके गोम्मटराय नामपर इसका नामकरण किया गया है । गोम्मटसारका परिशिष्टरूप लब्धिसार भी यतिवृषभके कषाय-प्राभृतपरसे इन्होंने संग्रह किया है । आचार्य नेमिचन्द्रकी अन्य किसी रचनाका हमें पता नहीं है ।
जिस तरह चक्रवर्ती अपने शासन-चक्रसे भारतवर्षके छह खण्डोंको साधता है, या अपने अधीन करता है, उसी तरह आचार्य नेमिचन्द्रने अपने बुद्धिरूप चक्रसे षट्खंडागमको साधा । इसीलिए वे सिद्धान्तचक्रवर्ती कहलोय ।
समय-विचार प्रारम्भमें ही कहा जा चुका है कि चामुण्डराय गंगनरेश राचमलके मंत्री थे और उनका राज्यकाल वि० सं० १०३१ से १०४१ तक है ।
चामुण्डरायने अपना चामुण्डराय पुराण श० सं० ९०० अर्थात् वि० सं० १०३५ में समाप्त किया था।
कनड़ी भाषाके सुप्रसिद्ध कवि रन्नने अपना 'पुराण-तिलक' (अजितपुराण) नामक ग्रन्थ श० सं० ९१५ अर्थात् वि० सं० १०५० में समाप्त किया था। उसने अपने ऊपर चामुण्डरायकी विशेष कृपा होनेका उल्लेख किया है।
इससे चामुण्डरायका समय विक्रमकी ग्यारहवीं सदीका पूर्वार्ध निश्चित होता है। माधवचन्द्र विद्यदेवने तिलोयसार-टीकामें लिखा है कि चामुण्डरायको प्रति.। बुद्ध करनेके लिए नेमिचन्द्र सि० च० ने इस ग्रन्थकी रचना की और इसी तरह गोम्मटसारकी मन्दप्रबोधिका टीकाके कर्ती अभयचन्द्र कहते हैं कि गंगनरेश १ जह चक्केण य चक्की छक्खंड साहियं अविग्येण ।
तह मइचक्केण मया छक्खंड साहियं सम्मं ।। ३९७-क० का० २ श्रीमदप्रतिहताप्रतिमनिःप्रतिपक्षनिष्करणभगवन्नेमिचन्द्रसैद्धान्तदेवश्चतुरनुयोगचतुरुदधिपारगश्चामुण्डरायप्रतिबोधनव्याजेन अशेषविनेयजनप्रतिबोधनार्थ त्रिलोकसारनामानं ग्रन्थमारचयन्
३ सिंहनन्दिमुनीन्द्रामिनन्दितगंगवंशललाम ... श्रीमद्राचमल्लदेवमहीवल्लभमहामात्यपदविराजमान रणरंगमल्लासहायपराक्रमगुणरत्नभूषण-सम्यक्त्वरत्ननिलयादिविविधगुणग्रामनामसमासादितकीर्ति ... श्रीचामुण्डरायभव्यपुण्डरीक-द्रव्यानुयोगप्रश्नानुरूपम् ... ...