________________
२९६
जैनसाहित्य और इतिहास
है। चामुण्डरायके पुत्र जिनदेवन भी इन्हींके शिष्य थे ।
चामुण्डराय जैनधर्मके उपासक तो थे ही, मर्मज्ञ विद्वान् भी थे। उनका कनकी भाषाका त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण ( चामुण्डराय-पुराण ) प्रसिद्ध है । उपलब्ध गद्य-अन्यों में यह सबसे प्राचीन गिना जाता है । इसके प्रारम्भमें लिखा है कि यह चरित्र पहले कूचि (?) भट्टारक, तदनन्तर नन्दिमुनीश्वर, तत्पश्चात् कविपरमेश्वर और फिर जिनसेन-गुणभद्र इस प्रकार परम्परा-क्रमसे चला आया है और उन्हींके अनुसार मैं भी लिखता हूँ।
गोम्मटसारके अन्तमें एक गाथा है जिससे ऐसा भास होता है कि गोम्मटसारकी कोई देसी टीका ( कनड़ी टीका ) भी उन्होंने लिखी थी जिसका नाम वीरमत्तण्डी था।'
चारित्रसार नामका एक संस्कृत ग्रन्थ भी चामुंडरायका बनाया हुआ कहा जाता है परन्तु वह एक तरहसे संग्रह ग्रन्थ है और बहुत करके तत्त्वार्थकी सर्वार्थसिद्धिटीकापरसे संग्रह किया गया है।
समसामयिक आचार्य चामुण्डरायके समयमें अनेक बड़े बड़े विद्वान् आचार्य हो गये हैं। उनमेसे एक तो उनके गुरु अजितसेन थे जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है और जो बहुत करके सेनसंघके थे। उन्हें 'भुवनगुरु' कहा गया है। दूसरे हैं अभयनन्दि - जिनके वीरनन्दि, इन्द्रनन्दि, कनकनन्दि और नेमिचंद्र नामक शिष्य १-गोम्मट्टसुत्तलिहिणे गोम्मटरायेण जा कया देसी।
सो (सा) राओ ( अइ ) चिरकालं णामेण य वीरमत्तंडी ॥ इस गाथाका ठीक अन्वय नहीं बैठता। पाठ भी शायद कुछ अशुद्ध है। परन्तु यदि सचमुच ही चामुण्डरायकी कोई देसी या कनड़ी टीका हो, जिसका कि नाम 'वीरमत्तंडी' था, तो वह केशववर्णिकी कर्नाटकी वृत्तिसे जुदा ही होगी, यह निश्चित है । एक कल्पना यह भी होती है कि उन्होंने गोम्मटसारकी कोई देसी (कनडी) प्रतिलिपि की हो । केशववर्णीकी कनडी-वत्तिके लिए देखिए डा० उपाध्यायका · जीवतत्त्वप्रदीपिका ऑन गोम्मटसार : इट्स आथर एण्ड डेट ' शीर्षक लेख । --इंडियन कल्चर जिल्द ७, नं० १। २ अजजसेणगुणगणसमूहसंधारिअजियसेणगुरू ।
भुवणगुरू जस्सगुरू सो राओ गोम्मटो जयउ ॥ ७३३ ॥-जी० का ।