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नाट्यकार हस्तिमल
इस हस्ति- युद्धका उल्लेख कविने अपने सुभद्राहरण नाटक में भी किया है और साथ ही यह भी बतलाया है कि कोई धूर्त जैन मुनिका रूप धारण करके आया था और उसको भी हस्तिमलने परास्त कर दिया था ।
पाण्ड्य महीश्वर
हस्तिमलने पाण्ड्यराजाका अनेक जगह उल्लेख किया है । वे उनके कृपापात्र थे और उनकी राजधानी में अपने विद्वान् आप्तजनों के साथ जा बसे थे । राजाने अपनी सभा में उन्हें खूब ही सम्मानित किया था । ये पाण्ड्य महीश्वर अपने भुजबलसे कर्नाटक प्रदेशपर शासन करते थे ।
कविने इन पाण्ड्य महीश्वरका कोई नाम नहीं दिया है । सिर्फ इतना ही मालूम होता है कि वे थे तो पाण्ड्यदेशके राजवंशके, परन्तु कर्नाटक में आकर राज्य करने लगे थे ।
दक्षिण कर्नाटक के कार्कल स्थानपर उन दिनों पाण्ड्यवंशका ही शासन था । यह राजवंश जैनधर्मका अनुयायी था और इसमें अनेक विद्वान् तथा कलाकुशल राजा हुए हैं । भव्यानंन्द नामक सुभाषित ग्रन्थके कर्त्ता भी अपनेको
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१ सम्यक्त्वं सुपरीक्षितं मदगजे मुक्त सरण्यापुरे चास्मिन्पाण्ड्य महेश्वरेण कपटाद्धन्तुं स्वमभ्यागते ( तं ) । शैलूषं जिनमुद्रधारिणमपास्यासौ मदध्वंसिना लोकनापि मदेभमल्ल इति यः प्रख्यातवान्सूरिभिः ॥
२ श्रीमत्पाण्ड्य महीश्वरे निजभुजादण्डावलम्बीकृतं कर्नाटा निमंडलं पदनताने कावनीशेऽवति । तत्प्रीत्यानुसरन्स्वबन्धुनिव है र्विद्वद्भिरातैस्समं जैनागारसमेत संतरनभे ( ? ) श्रीहस्तिमोऽवसत् ॥
- सुभद्राहरण
-अंजनापवनंजय
३ भव्यानन्द शास्त्रकी एक प्रति ' ऐ० पन्नालाल सरस्वतीभवन' में है । यह आत्मानुशासन, भर्तृहरिशतकके ढंगकी सुन्दर प्रसादगुणयुक्त रचना है । इसमें नागचन्द्रका स्मरण किया गया है और इसके आधारपर पं० के० भुजबलिशास्त्रीने शक सं० १३५० के लगभग उसका निर्माण-काल निश्चित किया है I