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दक्षिणके तीर्थक्षेत्र
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ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णके श्रावक हैं । जातियोंका यही व्यवहार है। ' मिथ्यादेवोंको कोई नहीं मानता। ताड़पत्रोंकी पुस्तकोंका भंडार है, जो ताँबेकी पेटियों में रहती हैं । सात धातुकी, चन्दनकी, माणिक, नीलम, वैडूर्य, हारा और विद्रुम (मूंगा ) रत्नोंकी प्रतिमायें हैं । बड़े पुण्यसे इनके दर्शन किये। ___ आगे कारकल ग्राममें नौपुरुष ऊँची गोम्मटस्वामीकी प्रतिमा है । नेमिनाथके
चैत्यमें बहुत-सी रत्न प्रतिमायें हैं। नाभिमल्हार ( ऋषभदेव ) की चौमुखी मूर्ति है। __ आगे वरांग ग्राममें नेमिकुमारका मन्दिर है और पर्वतपर साठ मन्दिर हैं। इस तरह तुलुव देशका वर्णन आह्लादपूर्वक किया।
आगे लिखा है कि सागर और मलयाचलके बीचमें जैन-राज्य है। वहाँ जिनवरकी झाँकीका प्रसार है । और कितना वर्णन करूँ ? वहाँसे पीछे लौटकर फिर कर्नाटकमें आया, घाट चढ़कर विनुरि" आया, जहाँ रानी राज्य करती है जिसके नौ लाख सिपाही हैं । विनुरिमें दो सुन्दर मन्दिरोंकी बन्दना की।
१-नातितणा अहज विवहार, मिथ्यादेवतणो परिहार । ८३ । · अहज' का अर्थ यह ही' होता है; परन्तु ' यही व्यवहार' क्या ? सो कुछ स्पष्ट नहीं होता। ___२-मद्रास मैसूरके जैन स्मारकके अनुसार कारकलमें चौमुखा मन्दिर छोटी पहाडीपर है जिसे शक संवत् १५०८ में वेंगीनगरके राजा इम्मदि भैरवने बनवाया था। __ ३-कारकलसे तीर्थली जाते हुए बरांग ग्राम पडता है। वहाँ विशाल मन्दिर है । इसके पास जंगल और बडे बडे पहाड हैं । इन पहाडोंमेंसे ही किसीपर उस समय साठ मन्दिर रहें होंगे । दशभक्त्यादि महाशास्त्रके कर्ता वर्द्धमान मुनिने भी यहाके नेमिनाथ जिनका उल्लेख किया है।
४-वेणूरके पास कोई घाट नहीं है । संभव है, गंगवाडीके पास यात्रीने घाट चढ़ा हो ।
५-विनुरि अर्थात् वेणूर । यह मूडबिद्रीसे १२ और कारकलसे २४ मील दूर है । यहाँ गोम्मटस्वामीकी २५ हाथ ऊंची मूर्ति है जिसका निर्माण वि० सं० १६६० में हुआ था। यह स्थान गुरुयुर नदीके किनारेपर है।
६ वेणूरमें सन् १६८३ से १७२१ तक अजिलवंशकी रानी पदुमलादेवीका राज्य था, जो जैन थी। नौ लाख सेना अतिशयोक्ति जान पड़ती है।