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________________ दक्षिणके तीर्थक्षेत्र २३५ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णके श्रावक हैं । जातियोंका यही व्यवहार है। ' मिथ्यादेवोंको कोई नहीं मानता। ताड़पत्रोंकी पुस्तकोंका भंडार है, जो ताँबेकी पेटियों में रहती हैं । सात धातुकी, चन्दनकी, माणिक, नीलम, वैडूर्य, हारा और विद्रुम (मूंगा ) रत्नोंकी प्रतिमायें हैं । बड़े पुण्यसे इनके दर्शन किये। ___ आगे कारकल ग्राममें नौपुरुष ऊँची गोम्मटस्वामीकी प्रतिमा है । नेमिनाथके चैत्यमें बहुत-सी रत्न प्रतिमायें हैं। नाभिमल्हार ( ऋषभदेव ) की चौमुखी मूर्ति है। __ आगे वरांग ग्राममें नेमिकुमारका मन्दिर है और पर्वतपर साठ मन्दिर हैं। इस तरह तुलुव देशका वर्णन आह्लादपूर्वक किया। आगे लिखा है कि सागर और मलयाचलके बीचमें जैन-राज्य है। वहाँ जिनवरकी झाँकीका प्रसार है । और कितना वर्णन करूँ ? वहाँसे पीछे लौटकर फिर कर्नाटकमें आया, घाट चढ़कर विनुरि" आया, जहाँ रानी राज्य करती है जिसके नौ लाख सिपाही हैं । विनुरिमें दो सुन्दर मन्दिरोंकी बन्दना की। १-नातितणा अहज विवहार, मिथ्यादेवतणो परिहार । ८३ । · अहज' का अर्थ यह ही' होता है; परन्तु ' यही व्यवहार' क्या ? सो कुछ स्पष्ट नहीं होता। ___२-मद्रास मैसूरके जैन स्मारकके अनुसार कारकलमें चौमुखा मन्दिर छोटी पहाडीपर है जिसे शक संवत् १५०८ में वेंगीनगरके राजा इम्मदि भैरवने बनवाया था। __ ३-कारकलसे तीर्थली जाते हुए बरांग ग्राम पडता है। वहाँ विशाल मन्दिर है । इसके पास जंगल और बडे बडे पहाड हैं । इन पहाडोंमेंसे ही किसीपर उस समय साठ मन्दिर रहें होंगे । दशभक्त्यादि महाशास्त्रके कर्ता वर्द्धमान मुनिने भी यहाके नेमिनाथ जिनका उल्लेख किया है। ४-वेणूरके पास कोई घाट नहीं है । संभव है, गंगवाडीके पास यात्रीने घाट चढ़ा हो । ५-विनुरि अर्थात् वेणूर । यह मूडबिद्रीसे १२ और कारकलसे २४ मील दूर है । यहाँ गोम्मटस्वामीकी २५ हाथ ऊंची मूर्ति है जिसका निर्माण वि० सं० १६६० में हुआ था। यह स्थान गुरुयुर नदीके किनारेपर है। ६ वेणूरमें सन् १६८३ से १७२१ तक अजिलवंशकी रानी पदुमलादेवीका राज्य था, जो जैन थी। नौ लाख सेना अतिशयोक्ति जान पड़ती है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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