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________________ १९२ जैनसाहित्य और इतिहास शिलालेखोंमें पावकगढ़' नामसे उल्लेख मिलता है । यह पहले तोमरवंशी राजा ओंके अधिकारमें था। चारण कवि चंदने अपने पृथ्वीराजरासोमें इस पावकगढ़का अधिपति रामगोड़ तोमरको लिखा है। उसके पीछे यह सन् १४८३ में मुसलमानोंके अधिकारमें आया। उनके समयमें भी यह प्रसिद्ध किला गिना जाता था। ___ यहाँ पहाड़के ऊपर आठ दस मन्दिरोंके खण्डहर पड़े हुए हैं जिनमेंसे तीनचारका कुछ समय पहले जीर्णोद्धार किया गया है । इन मन्दिरोंमें जो प्रतिमायें हैं उनमें सबसे प्राचीन प्रतिमा माघ सुदी ७ सोमवार वि० सं० १६४२ को भट्टारक वादिभूपणके उपदेशसे प्रतिष्ठित हुई है। १६४५, १६६५ और १६६९ की भी प्रतिमायें हैं परन्तु प्रतिमा-लेखोंसे अथवा और किसी प्राचीन लेखसे इस स्थानका सिद्धक्षेत्र होना प्रकट नहीं होता । पावागढ़के नीचे चाँपानेर शहरके खण्डहर पड़े हुए हैं । किसी समय यह बड़ा भारी नगर था। __ श्रीरविषेणाचार्यकृत पद्मचरितके अनुसार रामचन्द्रके पुत्र लव-कुंशने अयोध्या में ही दीक्षा ली थी; परन्तु इस बातका कोई उल्लेख नहीं है कि उनका निर्वाण पावागिरिसे हुआ था । अन्य किसी कथा-ग्रन्थमें भी इसका स्पष्ट निर्देश देखने में नहीं आया। पावागिरि (द्वितीय) पावागिरिवरसिहेर सुवण्णभदाइ मुणिवरा चउरो। चलणाणईतडग्गे णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ १३ ॥ इस गाथामें एक दूसरे पावागिरिका निर्देश है जो चलना नदीके तटपर था और जहाँसे सुवर्णभद्रादि चार मुनियोंको मोक्ष हुआ था। संस्कृत निर्वाणभक्तिमें न तो उक्त चलना नदीका नाम है और न पावागिरिका, सिर्फ लिखा है १ दिगम्बर-जैन डिरैक्टरीके अनुसार पाँचवें फाटकके बाद छठेके बाहर भीतपर एक पद्मासन-प्रतिमा डेढ़ फीट ऊँची उत्कीर्ण है, जिसपर संवत् ११३४ लिखा है । २ श्रीगुणभद्राचार्यकृत उत्तरपुराणमें तो रामचन्द्रके पुत्रोंका ही जिक्र नहीं हैं। लवकुश नामके पुत्र ही उनके नहीं हुए ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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