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________________ १८० जैनसाहित्य और इतिहास राजधानी उजयिनीमें थी। वे राजा सीयक, श्रीहर्ष या सिंहभटके पुत्र थे, बड़े ही पराक्रमी । कर्णाटक, लाट, केरल, चोलके राजाओंको उन्होंने जीता। कलचुरिनरेश युवराज देव (द्वितीय) को हराकर उसकी राजधानी त्रिपुरीको लूटा, मेवाड़पर चढ़ाई करके आहाड़ को नष्ट किया और चित्तौरगढ़ और उसके पासके प्रदेशको अपने राज्यमें मिला लिया। उन्होंने सोलंकी राजा तैलप द्वितीयको छह बार हराया, पर सातवीं बार गोदावरीके पासके युद्धमें वे कैद कर लिये गये और वि० सं० १०५० और १०५४ के बीच मार डाले गये । सुभाषितरत्नसंदोहकी रचनाके समय वे जीते थे । तिलकमंजरीके कर्ता धनपाल, नवसाहसांकचरित-कर्ता पद्मगुप्त या परिमल, दशरूपावलोक-टीकाके कर्ता धनिक, पिंगल-छन्दःसूत्रके टीकाकार हलायुध और अमितगति इस राजाकी ही सभाके रत्न थे। सिन्धुल, सिन्धुराज, कुमारनारायण या नवसाहसांक मुंजके छोटे भाई और प्रसिद्ध राजा भोजके पिता थे । पद्मगुप्तने इन्हींकी आज्ञासे ' नवसाहसांक-चरित' नामका ऐतिहासिक काव्य लिखा था । मुंजने अपने जीते जी ही भोजको गोद ले लिया था। परन्तु भोज नावालिग ये, इसलिए मुंजकी मृत्युके समय सिन्धुल ही राजगद्दीपर बैठ गये थे। इन्होंने हूणोंको तथा दक्षिण कोशल, बागड़, लाट और मुरलवालोंको युद्धमें हराया था। ये गुजरात-नरेश सोलंकी चामुण्डराजके साथकी लड़ाई में मारे गये । वि० सं० १०५४ और १०६६ के बीच किसी समय इनके मारे जानेका अनुमान किया गया है। भक्तामर-चरित, प्रबन्धचिन्तामणि, भोजप्रबन्ध आदि ग्रन्थों में राजा मुंजके द्वारा सिन्धुलके अन्धे किये जाने और भोजको वध करनेके लिए भेजनेकी जो कथायें मिलती हैं, वे सभी कपोलकल्पित मालूम होती हैं । इतिहाससे उनकी कोई पुष्टि नहीं होती। आगे अमितगतिके ग्रन्थोंकी प्रशस्तियाँ उद्धृत की जाती हैं १ वाक्पतिराजके एक दान-पत्रसे ( ई० एण्टिक्वेरी, जिल्द ६, पृ० ५१-५२ ) और परिमलके नवसाहसांक-चरितसे मालूम होता है कि मुंजके समय राजधानी उज्जयिनी थी। उसके बाद धाराको भोजदेवने अपनी राजधानी बनाया था।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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