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नयचक्र और देवसेनसूरि
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भावसंग्रह (प्राकृत ) में जगह जगह दर्शनसारकी अनेक गाथायें उद्धृत की गई हैं और उनका उपयोग उन्होंने स्वनिर्मित गाथाओंकी भाँति किया है । इससे इस विषयमें कोई संदेह नहीं रहता कि दर्शनसार और भाव-संग्रह दोनोंके कर्ता एक ही देवसन हैं। __इनके सिवाय आराधनासार और तत्त्वसार नामके ग्रंथ भी इन्हीं देवसेनके बनाये हुए हैं और जो प्रकाशित हो चुके हैं।
पं० शिवजीलालने इनके 'धर्मसंग्रह' नामके एक और ग्रंथका उल्लेख किया हैं; परंतु वह अभीतक हमारे देखनेमें नहीं आया ।