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जैनसाहित्य और इतिहास
शाकटायनस्तु अद्य पंचमी अद्य द्वितीयेत्याह ।
-गणरत्न पृ० ९०, अमोघवृत्ति २।१।७९ इसके सिवाय नन्दिसूत्रकी मलयगिरिकृत टीकाका उद्धरण ऊपर दिया जा चुका है जिसमें टीकाकर्त्ताने 'श्रीवीरममृतं ज्योतिः ' आदि मंगलाचरणको शाकटायनकी स्वोपज्ञवृत्तिका बतलाया है। इससे सिद्ध है कि अमोघवृत्ति स्वयं शाकटायनकी बनाई हुई है।
रचना-काल ऊपर ' ख्याते दृश्य' सूत्रकी जो अमोघवृत्ति दी है, उसमें एक उदाहरण है.---" अदहदमोघवर्षोऽरातीन् ।” अर्थात् अमोघवर्षने शत्रुओंको जला दिया । इस उदाहरणमें ग्रन्थकर्त्ताने अमोघवर्ष (प्रथम) की अपने शत्रुओंपर विजय पानेकी जिस घटनाका उल्लेख किया है, ठीक उसीका जिक शकसंवत् ८३२ ( वि० सं० ९६७) के एक राष्ट्रकूट-शिलालेखमें इन शब्दोंमें किया है-" भूपालान कण्टकाभान वेष्टयित्वा ददाह।" और इसका भी अर्थ लगभग वही है; अमोघवर्षने उन राजाओंको घेरा और जला दिया जो उससे एकाएक विरुद्ध हो गये थे । उक्त शिलालेख अमोघवर्षके बहुत पीछे लिखा गया था, इसलिए उसमें परोक्षार्थवाली 'ददाह' क्रिया दी है। उसके लेखकके लिए उक्त घटनाका स्वयं देखना अशक्य था । परन्तु अमोघवृत्तिके कर्ताके लिए शक्य था, इसलिए उसने 'अदहत्' यह लङ् प्रत्ययकी क्रिया दी है । अर्थात् यह उसके समक्षकी घटना होगी। ___ बगमुराके दान-पत्र में जो श० सं० ७८९ ( वि० सं० ९२४ ) का लिखा हुआ है इस घटनाका उल्लेख है। उसका सारांश यह है कि गुजरातके माण्डलिक राजा एकाएक बिगड़ खड़े हुए और उन्होंने अमोघवर्षके विरुद्ध हथियार उठाये,
१ इसी सूत्रकी वृत्तिमें एक उदाहरण और है— अरुणद्देवः पाण्डयम् ' अर्थात् देवने पाण्डधनरेशको रोका । अमोघवर्षके शर्वदेव, तुंगदेव, आदि अनेक नाम है । इस देवसे भी उन्हींका मतलब जान पड़ता है । उन्होंने इसके अनुसार किसी पाण्डच राजाको रोका या कैद कर लिया होगा।
२ एपिग्राफिआ इंडिका जिल्द १, पृ० ५४ । ३