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जैनसाहित्य और इतिहास
कालमें वि० उस समय मा पाँचवीं
यह कवि काश्मीरनरेश कलशके राज्य-कालमें वि० सं० १११९ के लगभग काश्मीरसे चला था और जिस समय धारामें पहुँचा उस समय भोजदेवकी मृत्यु हो चुकी थी। इससे वे आशाधरके प्रशंसक नहीं हो सकते । भोजकी पाँचवीं पीढ़ीके राजा विन्ध्यवर्माके मंत्री बिल्हण उनसे बहुत पीछे हुए हैं। चौर-पंचासिका या बिल्हण-चरितका कर्ता बिल्हण भी इनसे भिन्न था। क्योंकि उसमें जिस वैरिसिंह राजाकी कन्या शशिकलाके साथ बिल्हणका प्रेम सम्बन्ध वर्णित है वह वि० सं० ९०० के लगभग हुआ है। शार्ङ्गधर-पद्धति, सूक्तमुक्तावली आदि सुभाषित-संग्रहोंमें बिल्हण कविके नामसे ऐसे बहुतसे श्लोक मिलते हैं जो न विद्यापति बिल्हणके विक्रमांकदेवचरित और कर्णसुन्दरी नाटिकामें हैं और न चौरपंचासिकामें । क्या आश्चर्य है जो वे इन्हीं मंत्रिवर बिल्हण कविके हो । ___ मांडूमें मिले हुए विन्ध्यवर्माके लेखमें इन बिल्हणका इन शब्दों में उल्लेख किया है-“ विन्ध्यवर्म-नृपतेः प्रसादभूः । सान्धिविग्रहकविल्हणः कविः ।” अर्थात् बिल्हणकवि विन्ध्यवर्माके कृपापात्र और परराष्ट्र-सचिव थे ।
६-५० देवचन्द्र-इन्हें पण्डित आशाधरजीने व्याकरण-शास्त्रमें पारंगत किया था।
७-भट्टारक विनयचन्द्र-इष्टोपदेशकी टीकाके अनुसार ये सागरचन्द्र मुनीन्द्र के शिष्य थे और इन्हें पण्डितजीने धर्मशास्त्रका अध्ययन कराया था। इन्हींके कहनेसे उन्होंने इष्टोपदेशकी टीका बनाई थी।
८-महाकवि मदनोपाध्याय-हमारा अनुमान है कि ये विन्ध्यवाके संधिविग्रहिक मंत्री बिल्हण कवीशके ही पुत्र होंगे' । 'बाल-सरस्वती' नामसे ये प्रख्यात थे और मालवनरेश अर्जुनवीके गुरु थे। अर्जुनवाने अपनी अमरुशतककी संजीविनी टीकामें जगह जगह ' यदुक्तमुपाध्यायेन बाल-सरस्वत्यापरनाम्ना मदनेन' लिखकर इनके अनेक पद्य उद्धृत किये हैं। उनसे मालूम होता है कि मदनका कोई अलंकारविषयक ग्रन्थ था । महाकवि मदनकी पारिजातमंजरी नामकी एक नाटिका थी, जिसके दो अंक धारकी 'कमाल मौला' मसजिदमें पत्थरोंपर खुदे हुए मिले हैं । अनुमान किया जाता है कि शेष अंकोंके पत्थर भी उक्त मसजिदमें ही कहीं लगे होंगे। पहले यह नाटिका महाराजा भोज
१ देखिए आगे प्रशस्तिके ६-७ वें पद्य ।