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जैनसाहित्य और इतिहास
जिसने धर्म-चक्रके आरोंसे पापोंको विदलित कर दिया है, जो त्रिजगत्के अधीश्वरोंद्वारा वंदनीय है, मंगलोंका मन्दिर है और अत्यन्त मनोज्ञ पंचकल्याणरूपी लक्ष्मीको धारण करता है । आगे कहा है कि सूर्यवंशंसे उत्पन्न हुए प्रसिद्ध चालुक्य ( सोलंकी) वंशमें युद्धमल्ल नामका एक राजा हुआ, जो सपादलक्ष ( सवालख) प्रदेशका स्वामी था, और जिसने तैलसे भरी हुई वापीमें मत्त हाथियोंको स्नान करानेका उत्सव किया । उसका पुत्र अरिकेसरी हुआ, कलिंगत्रेय सहित वेंगी प्रदेशकी रक्षा की। ( ४ ) अरिकेसरीके चन्द्र-सूर्यके समान नरसिंह
और भद्रदेव नामके दो पुत्र हुए । ( ५ ) इनमेंसे नरसिंहके युद्धमल्ल नामका पुत्र हुआ और उसके बन्दीजनों ( भाटों) के लिए चिन्तामणिके तुल्य बद्दिग हुआ। (६) इसने अत्यन्त पराक्रमशाली भीम नामक राजाको जल-युद्धमें अनायास ही पकड़ लिया। (७) बद्दिगके युद्धमल्ल हुआ, जो अत्यन्त उदार, पराक्रमी, कीर्ति. शाली और प्रतापी था (८) इसके नरसिंहराज और नरसिंहराजके अरिकेसरी नामक पुत्र हुआ। ( ९-११) सुप्रसिद्ध राष्ट्रकूट कुलकी कन्या लोकांबिका इसकी पत्नी हुई। (१२) इन दोनोंसे शिव-पार्वतीसे कार्तिकेयके समान भद्रदेव नामक पुत्र हुआ । (१३) और उससे अरिकेसरी नामक तेजस्वी राजा हुआ । (१४) श्रीगौडसंघमें यशोदेव नामक आचार्य हुए जो मुनिमान्य थे और जिनका उग्र तपके प्रभावसे शासन-देवतासे समागम हुआ । (१५) उन महान् ऋद्धिके धारक महानुभावके शिष्य नेमिदेव हुए, जो स्याद्वाद समुद्रके उस पार तक देखनेवाले और परवादियोंके दर्परूपी वृक्षोंके छेदनेके लिए कुठार थे । ( १६ ) जिस तरह खानमेसे अनेक रत्न निकलते हैं, उसी तरह उन तपोलक्ष्मीपतिके बहुतसे शिष्य हुए । ( १७) उनमें सैकड़ोंसे छोटे श्री सोमदेव पंडित हुए, जो तप, शास्त्र और यशके स्थान थे।
१ महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकरजी ओझाने अपने 'सोलंकियोंका इतिहास में चौलुक्य नरेशोंको चन्द्रवंशी लिखा है और इसके लिए अनेक शिलालेखोंके प्रमाण दिये हैं। केवल इसी लेखमें सूर्यवंशी लिखा है ।
२ त्रिकलिंग अर्थात् तैलंगन या तिलंगाना ।
३ वेंगी राज्यकी सीमा उत्तरमें गोदावरी नदी, दक्षिणमें कृष्णा नदी, पूर्वमें समुद्रतट और पश्चिममें पश्चिमी घाट थी। इसकी राजधानी वेंगी नगर थी, जो इस समय पेड वेंगी ( गोदावरी जिला ) नामसे प्रसिद्ध है।