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जैनसाहित्य और इतिहास
है कि प्राचीन धर्म-सूत्रोंको सुधार कर उत्तरकालमें स्मृतियाँ बनाई गई हैं—जैसे कि मनु और याज्ञवल्क्यकी स्मृतियाँ । जो धर्मसूत्र खोये गये हैं उनमें एक मनुका सूत्र भी है जिससे कि पीछेके समयमें मनुस्मृति बनाई गई है।' ___ याज्ञवल्क्य स्मृतिके सुप्रसिद्ध टीकाकार विज्ञानेश्वर लिखते हैं, ' याज्ञवल्क्यशिष्यः कश्चन प्रश्नोत्तररूपं याज्ञवल्क्यप्रणीतं धर्मशास्त्र संक्षिप्य कथयामास, यथा मनुप्राक्तं भृगुः । ' अर्थात् याज्ञवल्क्यके किसी शिष्यने याज्ञवल्क्यप्रणीत धर्मशास्त्रको संक्षिप्त करके कहा, जिस तरह कि भृगुने मनुप्रणीत धर्मशास्त्रको संक्षिप्त करके मनुस्मृति लिखी है । इससे मालूम होता है कि उक्त दोनों स्मतियाँ, मनु
और याज्ञवल्क्यके प्राचीन शास्त्रोंके उनके शिष्यों या परम्पराशिष्यों द्वारा निर्मित किये हुए सार हैं और इस बातको तो सभी जानते हैं कि उपलब्ध मनुस्मृति भृगुप्रणीत हैं-स्वयं मनुप्रणीत नहीं। ___ बम्बईके गुजराती प्रेसके मालिकोंने कुल्लूकभट्टकी टीकाके सहित मनुस्मृतिका एक सुन्दर संस्करण प्रकाशित किया है । उसके परिशिष्टमे ३५५ श्लोक ऐसे हैं जो वर्तमान मनुस्मृतिमें तो नहीं मिलते हैं; परन्तु हेमाद्रि, मिताक्षरा, पराशरमाधवीय, स्मृतिरत्नाकर, निर्णयसिन्धु आदि ग्रन्थों में मनु, वृद्ध मनु और बृहन्मनुके नामसे ' उक्तं च ' रूपमें उद्धृत किये हैं। इसके सिवाय सैकड़ों श्लोक क्षेपकरूपमें भी दिये हैं, जिनकी कल्लूक भट्टने भी टीका नहीं की है।
हमारे जैनग्रन्थों में भी मनुके नामसे अनेक श्लोक उद्धृत किये गये हैं जो इस मनुस्मृतिमें नहीं है। उदाहरणार्थ पं० टोडरमलजीने अपने मोक्षमार्गप्रकाशके पाँचवें अधिकारमें मनुस्मृतिके तीन श्लोक दिये हैं, जो वर्तमान मनुस्मृतिमें नहीं हैं । इसी तरह — द्विजवदनचपेट ' नामक दिगम्बर जैनग्रन्थमें भी मनुके नामसे ७ श्लोक उद्धृत हैं जिनमेंसे वर्तमान मनुस्मृतिमें केवल २ मिलते हैं, शेष ५ नहीं ।
१ रमेशबाबूने अपने इतिहासके चौथे भागमें इस समय मिलनेवाली पृथक् पृथक् बीसों स्मृतियोंपर अपने विचार प्रकट किये हैं और बतलाया है कि अधिकांश स्मृतियाँ बहुत पीछेकी बनी हुई हैं और बहुतोंमें-जो प्राचीन भी हैं—बहुत पीछे तक नई नई बातें शामिल की जाती रही हैं ।
२ देखो मोक्षमार्गप्रकाशका बम्बईका संस्करण, पृष्ठ० २०१।।
३ . द्विजवदनचपेट ' संस्कृत ग्रन्थ है। कोल्हापुरके श्रीयुत पं० कल्लाप्पा भरमाप्पा निटवेने जैनबोधक 'मैं और स्वतंत्र पुस्तकाकार भी, अबसे बहुत पहले, मराठी टीकासहित प्रकाशित किया था।