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जैन, रत्नाकर चवदै नियम की ढाल ।
(देशी–सोई रे सयाणा अवसर साधै०) सचित १ द्रव्य २ विगय ३ परिहार, पन्नी ४. तंबोल ५ वस्त्र ६ सुविचार। फूल ७ बाहन ८ सयन ६ सुखकार, विलेपन १० ब्रह्मचर्य ११ धार ॥ सोई रे. सयाणा नेम चितारै, श्रावक ते आतम निस्तारै ॥१॥ दिशि १२ तणो करै परिमाण, स्नान १३ तणी. मर्यादा. आण । भात १४ तणो नियम बले जाण, ए चवदै नियम सीखे गुणखाण ॥२॥ पृथ्वी अप तेउ बले वाय, वनस्पति त्रस ए छहुँ काय । कूटण पीटण छेदन करै काय, परिमाण करै मन समता लाय ॥३॥ असनादिक ना द्रव्य अनेक, परिमाण करै मन समता छेक। दूध दही घृत ने मिष्टान्न, तैल बले विविध पकवान ॥४॥ मद्य मांस अभक्ष कहाय, श्रावक तो नहिं सेवै ताय । माखण मधु नो करै परिमाण, श्रावक ते कहिये गुण खाण ॥५॥ विगय तणो करै पचखाण, समता बसावै दिल माँ आण । चर्म तणी तथा बस्त्र नी जोय, पन्नी पावड़ियादिक अवलोय ॥६॥ पान सुपारी एलायची पेख, वस्त्र वासना द्रव्य अनेक। चित