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जैन रत्नाकर
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व्रत-धारण शिक्षा
(देशी-दुलजी छोटोतो) श्रावक ! व्रत धारो,
निज जीवन-धन सम्भारो रे ! श्रा० ॥ जैनागम रहस्य विचारो रे,
श्रावक ! व्रत धारो। क्षणिक-विषय-सुख खातर आतुर, __ मानव-भव मत हारो रे ॥श्रा०नि०॥ए आं०॥ अव्रत-नाला वहै दग चाला,
रोकण तास प्रचारो रे ॥ श्रा०॥ आत्म-तलाव कर्म-जल विरहित,
करवा हित अविकारो रे ॥ श्रा० ॥१॥ हिंसा वितथ अदत्त रु मन्मथ,
लोभ क्षोभ करनारो रे ॥ श्रा० ॥ निज मन्दिर में तस्कर-लस्कर, ___ तास करन मुंह कारो रे ॥ श्रा० ॥२॥ ईर्ष्या द्वेष असूया मत्सर,
घर-घर क्लेश करारो रे ॥ श्रा० ॥