________________
-
-
जैन रत्नाकर पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं न करेमि सेवन करूं छू दो करण तीन योग थी सावद्य योग नो सेवन न करूं न कारवेमि मणसा वयसा कायसा तस्स न कराऊ मन थी' वचन थी काया थी पूर्व कृत सावध व्यापार थी भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि हे भगवन् निवृत्त होऊ छु। निन्दा करूं छू गहीं करूं छू अप्पाणं वोसिरामि ।। आत्माने पाप थी दूर करू छु।
हे भगवन् ! मैं आपकी अनुमति से सामायिक करता हूं। मैं एक मुहूर्त के लिये सावध योग का प्रत्याख्यान करता हूं अर्थात् पापकारी प्रवृत्ति छोड़ता हूं। मैं पापकारी प्रवृत्ति स्वयं नहीं करूंगा मन से, वचन से, शरीर से। इसी तरह दूसरों के पास कराऊंगा भी नहीं मन से, वचन से, शरीर से । हे भगवन् ! मैंने इस समय से पहले जो पापकारी प्रवृत्ति की है-उससे मेरी आत्मा को दूर हटाता हूं एवं उस पाप में प्रवृत्त आत्मा की निन्दा एवं गर्दा करता हूं तथा आत्मा को याने उस पापकारी प्रवृत्ति को छोड़ता हूं।
सामायिक के कई मुख्य नियम १-उघाड़े मुंह नहीं बोलना । २-बिना देखे इधर उधर नहीं
फिरना। ३-विकथा नहीं करना ।