________________
१२४
जैन रत्नाकर
आडम्बर में धर्म कहां है, स्वार्थसिद्धि में धर्म कहाँ है। शुद्ध साधना धर्म वहां है, करते हम हर वक्त इशारा ।
अमर रहेगा धर्म हमारा ॥२॥ धर्म नाम से शोषण करते, धर्म नाम से निज घर भरते । धर्म नाम से लड़ते भिड़ते, वे सब धर्म कलङ्क विचारा ।
अमर रहेगा धर्म हमारा ॥ ७॥ प्रलयकार पवन भी वाजें, उठे तुफानों की आवाजें, पल्टै सब जग रीति रिवाजे, पर नहिं यह कहीं पलटनहारा ।
अमर रहेगा धर्म हमारा ॥७॥ धर्म नाम पर डटे रहेंगे । सत्य सौध में सटे रहगे, सङ्कट हो यदि सकल सहगे, तुलसी निश्चित है निस्तारा,
अमर रहेगा धर्म हमारा ॥८॥
॥ समाप्तम् ॥