SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शूर्पणखा ३७६ ~~~~~~~~~~ एक नार है पास मेरे, दिन रात नीद नही आती है। जा लक्ष्मण के पास अर्ज कर, ब्याह करना जो चाहती है ।। दाहा. कामान्धी को खबर ना, गई अनुज के पास । हाथ जोड़ करने लगी, चरणो मे अरदास ।। शूप०-हे नाथ विनती दासी की, करुणा कर हृदय धर दीजे। पास आपके भेजी हूँ, अब विवाह मेरे संग कर लीजे । लक्ष्मण एकदम झुंझलाया, बोला ज्यादा बक बक न कर । जात है तू औरत की, वरना अभी उड़ा दू तेरा सिर । दोहा (लक्ष्मण) क्यो कामन अन्धी हुई, फिरती शर्म उतार । पहिले मेरे भ्रात को, बना चुकी भर्तार ।। कहां गया वह सत्य तेरा, जो पति दूसरा चाहती है। बन की कही चुडेल आन, नखरे हमको बतलाली है।। शूर्पणखां सहमी जाती, लक्ष्मण बेधड़क सुनाते है । सिया राम उधर हंस हंस कर, दोनो हाथी ताल बजाते हैं । दोहा चल हट यहां से अलग हट, गले न तेरी दाल । और कही पर आप यह, डालो अपना जाल ।। ' बड़े भ्रात से करी प्रार्थना, भाभी लगे हमारी है। देख अरिसा जरा दिखाऊं, क्या यह शक्ल तुम्हारी है । टिम टिमा कर खड़ी सामने, नयनो को फडकाती है। झूठ बोलते हुये जरा भी, मन मे नहीं लजाती है। • छल फरेब करती घर घाल्लो, रूप बना कर आई है। । क्या इसी शक्ल पर दो पुरुषो, ने कहती जान गंवाई है ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy