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रामायण
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राम - तुम लखन को सुनाओ, अपनी यह दुख कहानी । हट दूर हो यहाँ से, क्या गड़बड़ी मचाई ॥८॥ शूर्पणखा - लक्ष्मण तो तेरा भाई, नादान है अक्ल का मेरी तरफ तो उसने, न नजर तक उठाई ॥६॥ राम - किया था मै रशारा, लक्ष्मण के पास जाओ । तुमने यहाॅ पर, क्यों टिकटिकी लगाई ॥१०॥
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फिर भी
दोहा ( शूर्पणखा )
स्वीकार ।
हाथ जोड़ विनती करू, कर लीजे शादी मुझ से कीजिये, और न कुछ दरकार ॥
दोहा
इतनी सुनकर बात को, चौंक पड़े श्रीराम सोचा यह प्रपंच सब, कर रही आकर वाम | देखो कैसे नार आन, त्रिया चरित्र फैलाती है ॥ आप बनी भोली भाली, और पागल हमें बनाती है । एक बात मुख से करती, और चार बनाती आँखों से ॥ अंग-अंग है नाच रहा, जैसे दरख्त निज पातों से ।
दोहा (राम)
बेशक इसको प्रेम है, पर है व्यभिचारिणी नार । भेजूं लक्ष्मण की तरफ, देवे मान उतार ।।
दोहा
रामचन्द्र कहने लगे, शूर्पणखा को वैन | जा पर ले के पास तू, जरा लगा के सैन || राम-पास नही जिनके नारी, बस चाव उन्हीं को होता है । जो फंसे प्र ेम के फंदे में, वह फिरे उमर भर रोता
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