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________________ ३७८ रामायण 1 राम - तुम लखन को सुनाओ, अपनी यह दुख कहानी । हट दूर हो यहाँ से, क्या गड़बड़ी मचाई ॥८॥ शूर्पणखा - लक्ष्मण तो तेरा भाई, नादान है अक्ल का मेरी तरफ तो उसने, न नजर तक उठाई ॥६॥ राम - किया था मै रशारा, लक्ष्मण के पास जाओ । तुमने यहाॅ पर, क्यों टिकटिकी लगाई ॥१०॥ . . फिर भी दोहा ( शूर्पणखा ) स्वीकार । हाथ जोड़ विनती करू, कर लीजे शादी मुझ से कीजिये, और न कुछ दरकार ॥ दोहा इतनी सुनकर बात को, चौंक पड़े श्रीराम सोचा यह प्रपंच सब, कर रही आकर वाम | देखो कैसे नार आन, त्रिया चरित्र फैलाती है ॥ आप बनी भोली भाली, और पागल हमें बनाती है । एक बात मुख से करती, और चार बनाती आँखों से ॥ अंग-अंग है नाच रहा, जैसे दरख्त निज पातों से । दोहा (राम) बेशक इसको प्रेम है, पर है व्यभिचारिणी नार । भेजूं लक्ष्मण की तरफ, देवे मान उतार ।। दोहा रामचन्द्र कहने लगे, शूर्पणखा को वैन | जा पर ले के पास तू, जरा लगा के सैन || राम-पास नही जिनके नारी, बस चाव उन्हीं को होता है । जो फंसे प्र ेम के फंदे में, वह फिरे उमर भर रोता 11
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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