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________________ श्री स्कन्धकाचार्य चरित्र ३४७ www. rrrrrrr-~करी चरण प्रणाम प्रभ जी, हम जावे विचरन को । दण्डक राजा को समझाने, और उपकार करन को ।। सत्य धर्म स्थापन, मिथ्या, नास्तिक पाप हरन को। पुरन्दर यशा को दृढ़ करन, निज पूर्ण करन प्रण को।" दौड़ प्रभु जी यो फर्मावे, उपद्रव हो दरशावे ।। होनहार बतलावे, सिवा तेरे सब का सिद्ध कार्य, अन्त मोक्ष मे जावे ॥ दोहा सर्वज्ञो के वचन को, कोई न टालन हार । होनहार होगी वही, यह भी परोपकार ।। यह भी है उपकार पांचसौ के सिद्ध कार्य होवें । धर्म काम मे लगे जिस्म तो, दुख समूह को खोवें । करेगे उग्र विहार स्वपर आत्म सब निर्मल होवे ॥ हर व्यक्ति के दिल अन्दर, हम बीज धर्म का बोवे । दौड़ ज्ञान वर्षा बरसा कर, मिथ्यात्व को दूर नसा कर । धर्म द्विविध दर्शाकर, अज्ञान रूप वन धसे, हम्तिगण को ज्यो सिंह भगाकर ॥ दोहा सोचा श्री संघ ने मुनि दण्डक देश मे जाय । नम्र निवेदन यू करे, चरणन शीश नवाय ॥ गाना नं० ४५ ( सघं० खं०) अर्ज श्री संघ को स्वामिन्, देश दंडक के मत जावे । प्रतिज्ञा टल नहीं सकती, चाहे अन्तक निगल जावे ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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