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________________ श्री स्कन्धकाचार्य चरित्र ३४३ दोहा ( सुगुप्त मुनि) पालक एक बजीर था, नास्तिक दुष्ट स्वभाव । धर्म ध्यान भावे नही, लाखो करो उपाय ।। दंडक नृप ने एक, दिन भेजा पालक काम । जित शत्रु भूपाल पे, ले आया पैगाम ।। ले आया पैगाम भूपने, सेवा की हित करके । धर्म स्थान ले गया दिलावे, शिक्षा इसे दिल धरके ॥ सन कर्म धर्म सबही का, हृदय कमल अति हर्षे । मिथ्या बस पालक सन, निदा करे क्रोध मे भरके ॥ दौड़ निंदा सुन खंधक आया, तुरत शास्त्रार्थ लगाया । हुई तब चर्चा जारी, अन्त मे पालक हुआ निरुत्तर खिष्ट सभा मे भारी॥ दोहा ( सुगुप्त ) हार सभा के बीच मे, गया स्वदेश मंझार । उपहास्य देख अपना अति, दिल मे द्वेष अपार ॥ __ चौपाई खंधक का दिल हा वैरागी, पर उपकार करू लवलागी। आज्ञा लेने माता पै आये, तब माता ने बचन सुनाये ।। जान हथेली जो धरे, वह ले संयम भार । यदि पीछे गिरना पड़े तो, उससे भली बेगार ॥ उससे भली बेगार, क्योंकि, यहाँ कष्ट समूह को सहना है। यदि कोई गर्दन पर धरे, तेग तो दीन वचन नहीं कहना है ।। रागद्वेष दो कर्म बीज को, दिल में जगह न देना है। कोई कष्ट आनकर पड़े जिस्म पर, सम प्रणामे सहना है॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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