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________________ भरत का राज्य २०५० मुद्रा मेरी निषाद को दे दीजे महाराज। केवट को करदो खुशी प्राणपति सिरताज ॥ श्री राम का था यही विचार 'उनका दरिद्र हर लेने को । सरकारी जो कुछ था महसूल वो सभी माफ कर देने का ।। उस जनक सुता का भी कहना श्री राम को था मंजूर सभी। दो नैन उठाकर केवटो को औदार चित्त ने कहा तभी॥ दोहा (राम) . . . निषाद राज आवो इधर यह लो आप- इनाम! सुन के वह कहने लगा अर्ज सुनो श्रीराम ।. . (निपाद ) .. रघुकुल दिनेश काटो क्लेश, तुम केवट जग अवतारी हो। मै क्या इनाम तुम से मागू,भव तारण आप खरारी हो ।। मैं पार किया जल से तुमको, तुम पार करो दुखों से हम को। जब केवट से केवट मिल गये, अब मेट दिया मेरे गम को ।। - दोहा केवट को करके खुशी, चले अगाड़ी राम । पार खड़े जन कह रहे, वह जाते सुख धाम ॥ जब राम दूर हुवे दृष्टि से तो, जनता सभी निराश हुई। मुख मंडल सब के मुआये, जैसे ग्रीष्म की घास नई॥ जब विरह की अग्नि भभक उठी, तब नेत्र वर्षा करने लगे। और लम्बे लम्बे श्वास छोड़, सन्तोष हृदय मे भरने लगे। दोहा परम विरहा शुभ शक्तिवान, थे सुयोग्य नरनार । प्रजा और श्रीराम मे, प्रम था गूढ अंपार ।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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