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________________ २१० रामायण wuN numainan आत्म में अनन्ती शक्ति है, सच्चिदानन्द बन सकती है। पूज्य काशीराम जी की शिक्षा, सब दुःख समूह हर सकती है ॥१८॥ दोहा परशुराम का प्रेम था, जनक भूप से खास । पिनाक धनुष था रख दिया, एक दिन उसके पास ॥ क्षत्रियो के बच्चे भी शस्त्रों से खेला करते है। क्योकि होते संस्कार, इस कारण से नहीं डरते हैं । खेल खेल मे था पिनाक, एक दिन सीता से भंग हुआ। किन्तु लाडली पुत्री थी, इस कारण जनक न तंग हुआ। इसी पुराणी बात को ले, ईर्ष्यालुओ ने षड्यन्त्र रचा। वो ही महापुरुष दुनिया मे सदा इन्हो से रहे बचा ॥ दोहा क्षत्रिय जन असफल हुये, सफल होगये राम । ईर्ष्या भाव से रच दिया, पड्यन्त्र उस धाम ।। परशुराम को ले आये, उल्टी सीधी बाते करके । विदा वाद आ खड़ा सामने, परशु कांधे पर धरके ।। परशुराम ने कहा क्रोध से, मम पिनाक क्यों तोड़ दिया। बस अब समझो तुमने भी, जीने से नाता छोड़ दिया। दोहा (लक्ष्मण) क्यो बाबा अपनी अक्ल, दई कहीं पर बेच । असम्बन्ध की बात सब, वृथा रहे हो खेंच ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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