SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीता स्वयम्बर जनक भूप उठकर बोले, जो क्षत्रिय धनुष उठायेगा । शूरवीर रणधीर आज, वो ही वर माला को पायेगा ॥ दोहा दोहा बैठे हुए सब इस तरह, तड़क भड़क कर के उठे, सुनकर वाणी जनक की, उठे भूप बलवान् । कंपाते हुए धरण को, मन मे भर अभिमान ॥ बोले ये धनुप तो चीज है क्या, हम बज्र इंद्र का तोड़ धरें । और मार गढ़ा हम मेरु गिरि के शिखर सभी है गर्द करें | तीर मारकर भूमि मे, असुरो के भवन मारे ऐसा अग्नि बाण हम, शशि कला को शत खण्ड करे एक हाथ से, जैसे खांड फिर उसे चढ़ाना चिल्ले पर, साधारण खेल तमाशा है ॥ हम वीर बहादुर अतुल बली, किस गिनती मे इन को लाते हैं । अभी चढ़ाकर प्रत्यंचा पर, जनक सुता को व्याहते हैं || २०१ सब चूर करे । भस्म करें ।। पताशा है । बजा रहे थे गाल । अभिमानी भूपाल, ॥ छन्द तैयार थे क्षत्रिय सभी, शक्ति दिखाने के लिए । पास आये धनुष के, चिल्ला चढ़ाने के लिए । ज्वलनसिंह कहने लगा, चिल्ला चढ़ाऊँ भाजते । सीता को पटरानी करू, बाकी रहे सब झांकते ॥ पास मे आया है जब, कोदंड लख घबरा गया । प्राण रक्षा के निमित्त सब, शक्ति को विसरा गया ॥ थरथराता धरणी पर वह, धम्म से आकर पड़ा । कायर अधम कहते कई, उपहास करते है बड़ा || ✔
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy