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________________ भामण्डल का अपहरण १६३ -NNN हम सेवकों पर भी कृपा, दृष्टि जरा रक्खा करें। क्या आपके दिल मे भी कोई, अपना विगाना होगया ॥ ७ ॥ भक्ति भाव से नारद को, सिंहासन पर बैठाया है। वृत्तान्त पूछने पर नृप को, मुनि ने कुछ भाष सुनाया है । कहे भूप यहाँ कुछ दिन ठहरें, अब बहुत देर से आये है । क्या दोष हमारा बतलाइये, अब तक नही दर्श दिखाये है ।। दोहा आया था जिस काम को, मन में वही उचाट । उधर महल मे देखत्ता, राजकुवर भी बाट । उसी समय नारद मुनि, भामंडल पे जाय। फोटो सीता का तुरत, दिया मुनि दिखलाय ॥ असर नही कुछ कुवर को, हुवा समझ कर फोक। गुण वर्णन कर मुनि ने, दिये मसाले ठोक ।। नारद का भामण्डल से कहना गाना नं. ५ तर्ज-कव्वाली जबा से कह नहीं सकता कि यह, जैसी दुलारी है। मिले जोड़ी तेरे संग तो, खुले किस्मत तुम्हारी है । रूप पुरनूर है रोशन, शर्म खाती है इन्द्राणी । हूबहू क्या कहूं सूरत, चॉद की सी उजारी है ॥ समझ भानु की मूरत है, ढली मानो है साँचे मे। मुल्क सब छान कर देखा, नही सदृश निहारी है । है चालि हंस के मानिन्द, कला चौसठ सभी पूर्ण । है मानिन्द मोर की गर्दन के नयनो की कटारी है।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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