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________________ १६२ रामायण www... m दोहा (नारद) मिथला नगरी से अभी पाया हूं राजकुमार । काम हमारा घूमना, सर्व जगत् मंझार ॥ आश्चर्य जनक इक चीज, आपकी खातिर मैं ये लाया हूँ। है तेरा ही अनुराग मुझे, इस लिये यहां पर आया हूँ ।। चलो अभी तुम महलो मे, हम भूप से मिल कर आते है। देर नही कुछ पास तुम्हारे, अभी आन दिखलाते हैं । दोहा कुवर गया निज महल में, मुनि खास दरवार। देख मुनि को भूपति, मन में खुशी अपार ॥ (चन्द्रगति का नारद मुनि से कहना) गाना नं०४ कहिये मुनि जी भूलकर, यहां कैसे आना हो गया। या विचरना बन्द करके, स्थिर ठिकाना होगया ॥१॥ शुभ दिन घड़ी है आज की, जो आपके दर्शन मिले । कुल पवित्र आज मेरा, गरीबखाना हो गया ॥२॥ इस सिंहासन पर विराजे, कीजिये अनुग्रह मुनि । रथनुपुर में प्रा.को, आये जमाना होगया ॥३॥ आजकल संसार मे, कहिये कहाँ क्या हो रहा । चरणो का सेवक कौन से, नप का घराना होगया ॥४॥ दान सेवा का कभी, हमको भी दिलवाया करें। क्या खबर यहाँ किस तरह, तशरीफ लाना होगया ॥५॥ शुक्ल अब यहाँ पर जरा, आराम कुछ दिन कीजिये। कारणवश जो आपका यहाँ, आवोदाना होगया ॥ ६ ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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