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________________ भामण्डल का अपहरण १८५ दोहा छान बीन कर सब तरह, देख लिये सब धाम । अन्त निराशा भूप ने, आ समझाई बाम ॥ बोले अए रानी | आज देव, कारण ही नजर आता है। पूर्व रिपु ले गया असुर कोई, पता नही पाता है । समझ नही जन्मा पुत्र, बस यही देव चाहता है। कर्मो के अनुसार प्रिया सब, सुख दुःख मिल जाता है। दौड़ मोह को दूर भगाओ, ध्यान श्री जिन चित्त लाओ । कर्म गति के है चाले, देख देख मुख पुत्री का बस रानी मन बहला ले। दोहा पुत्री का मुख देखताँ, शीतल तन मन जान । माता पिता ने रख दिया, सीता जिसका नाम ।। चन्द्रकला सम बढ़ रही, चौसठ कला निधान । रूप कला और गुण सभी, शील रत्न की खान ।। दोहा सीता जैसा जगत् मे नहीं किसी का रूप । जहाँ तहाँ भेजे देखने, वर कारण नर भूप ॥ देखे राजकुमार बहुत, वर मिला नहीं कोई शानी का । कोई मिले बराबर गुणवाला, था यही ख्याल महारानी का ॥ समरूप अद्वितीय गुणधारी, किसी राजकुमार को चाहते थे। अति पुरुषार्थ करने पर भी, सन्तोष जनक नही पाते थे। स्त्रिी भाग्य
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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