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रामायण
mirrrrrrrrrrrammam सर्व सिद्धि के लिये पुरुषार्थ साधन मुख्य है, धर्म ही सब के लिये, आनन्द वर्षाने को है।।।
दोहा कैसी ही हो पण्डिता, कैसी ही प्रवीण । झूठ दगा उल्टी मति, त्रिया अवगुण तीन ।
चौपाई अब रथनुपुर की करी चढ़ाई, जो थी रडक हृदय दुखदायी। सीमा पर जा कटक जमाया, इसी समय एक दूत पठाया ॥
दोहा सहस्रार नृप इन्द्र को कहता वारम्बार। बेटा अब ना मान कर अपना समय विचार ।। अपना समय विचार, है इससे सहस्रांशु नृप हारा। नल कुवेर सुर सुन्दर आदि, मान सभी का मारा। आज्ञा में भूप अनेक, मुख्य सुग्रीव वड़ा बलवारा । चढा पुण्य प्रचण्ड तेज, सूर्य सम आज उजारा ।।
दौड़ प्रथम ही प्रेम बढ़ावो, रावण से भागिनी विवाहो। ध्यान गौरव का करना, यदि छिड़ा संग्राम पुत्र तो पड़ेगा संकट जरना ॥
दोहा
सुनी बात जव इन्द्र ने, जल बल हो गया ढेर ।। प्रवल सिंह सम उछल कर, खैच लई शमशेर । बोला ले तलवार तुम्हीं, ने तो कांटे बोये हैं। लंका किष्किन्धा, आदि देश सभी खोए है ॥