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रावणका दिग्विजय ।
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विचार करो। कन्या-दान अन्तमें किसीको देना ही था। फिर कन्या यदि अपनी इच्छासे किसी कुलीन वरको वरले तो इसमें बुरा क्या है ? यह तो उल्टे अच्छा ही है। ( मुझे ज्ञात हुआ है कि सूर्पणखा स्वयं, उसकी अनुरागिणी होकर, उसके साथ गई है।) दूषणका पुत्र खर विद्याधर सूर्पणखाके योग्य वर है । वह पराक्रमी आपका एक निर्दोष सुभट बन सकता है । इसलिए उसपर प्रसन्न हो
ओ; और प्रधान पुरुषोंको भेज, सूर्पणखाके साथ उसका व्याह करवा दो । पाताल लंकाका राज्य भी उसीको दे दो।" दोनों अनुज बन्धुओंने भी रावणको इसी तरह समझाया। रावणने शान्त होकर उनकी बात मान ली और मय व मरीच नामके दो राक्षस अनुचरोंको भेज, उसने खरके साथ सूर्पणखाका व्याह करवा दिया। तत्पश्चात् पाताल लंकामें रह रावणकी आज्ञा पालता हुआ, खर सूर्पणखा सहित आनंदसे भोग भोगता हुआ दिन बिताने लगा।
राज्यभ्रष्ट चंद्रोदय कालयोगसे मर गया । उस समय उसकी पत्नी ' अनुराधा ' गर्भिणी थी। वह भाग कर वनमें चली गई । वहाँ उसने, सिंहनी जैसे सिंहको जन्म देती है वैसे ही एक ( पुरुषसिंह ) पुत्रको जन्म दिया । उसका नाम 'विराध' रक्खा । वह बड़ा ही नीतिमान और बलवान हुआ। युवावस्था तक वह सर्व कलासागरको पार कर गया-सारी कलाओंमें प्रवीण होगया।